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"आलाप में गिरह (कविता) / गीत चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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कभी दौड़ पड़े तो थकान नहीं  
 
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और कभी बैठे-बैठे ही टप् से गिर पड़े
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और कभी बैठे-बैठे ही ढह गए
मुक़ाबले में इस तरह उतरे कि उसे दया आ गई
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मुक़ाबले में इस तरह उतरे कि अगले को दया आ गई
 
और उसने ख़ुद को ख़ारिज कर लिया
 
और उसने ख़ुद को ख़ारिज कर लिया
 
थोड़ी-सी हँसी चुराई
 
थोड़ी-सी हँसी चुराई

21:22, 28 जुलाई 2012 के समय का अवतरण

जाने कितनी बार टूटी लय
जाने कितनी बार जोड़े सुर
हर आलाप में गिरह पड़ी है

कभी दौड़ पड़े तो थकान नहीं
और कभी बैठे-बैठे ही ढह गए
मुक़ाबले में इस तरह उतरे कि अगले को दया आ गई
और उसने ख़ुद को ख़ारिज कर लिया
थोड़ी-सी हँसी चुराई
सबने कहा छोड़ो भी

और हमने छोड़ दिया