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"अलबम / पवन करण" के अवतरणों में अंतर
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− | यह कविता पवन करण की | + | यह कविता पवन करण की ’बूढ़ी बेरिया’ कविता का ही नया रूप है। |
एक अकेली वीरान औरत के पास | एक अकेली वीरान औरत के पास |
02:12, 23 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
यह कविता पवन करण की ’बूढ़ी बेरिया’ कविता का ही नया रूप है।
एक अकेली वीरान औरत के पास
जिसे हम बूढ़ी माँ कहकर बुलाते हैं
एक अलबम है
उसके घर की तरह पुरानी, मैली
और लगातार फटती जा रही है अलबम
जिसे वह यूँ ही किसी को नहीं दिखाती
रखती है सन्दूक में सँभालकर
मगर जब भी अलबम खुलती है
वह निर्जन औरत खुलती है
खुलता है उसका भयावह सूनापन
उस औरत का दिल सीने में नहीं
सन्दूक में बन्द एलबम में धड़कता है
टोकती नहीं
स्कूल जाते समय बच्चों को
लौटते वक़्त उन्हें
पास बुलाती है
बूढ़ी बेरिया
उनसे करती है
बेरों की भाषा में
खट्टी-मीठी बातें
उनके प्रेम में जीवन-भर
अभिभूत
माँ-सी बेरिया
रख ही नहीं पाती याद
बच्चों ने उस पर
कब कितने
पत्थर उछाले