"देखौ री! जसुमति बौरानी / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
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− | + | सूरदास जी कहते हैं - (गोपियाँ कहती हैं -) देखो तो सखी ! यशोदा जी पगला गयी हैं । `ये अनजान बनी गोपाल को गोद में लिये घर-घर उनके सिर पर (आशीर्वाद का) हाथ रखवाती घूम रही हैं । जानती नहीं कि ये तो साक्षात् जगत्-पूज्य लक्ष्मीकान्त हैं । इनके (गोकुल में) आने से ही (हमारी) सब आपत्तियाँ दूर हो गयी हैं, जिसके नाम ही मन्त्र हैं और (उन मंत्रों में) जिसकी शक्ति है, उसी के ऊपर मन्त्र पढ़ कर जल के छींटे देती हैं । समस्त ब्रह्माण्ड जिसके उदर में हैं जल-स्थल में सर्वत्र जिसकी ज्योति व्याप्त है, वही सब मुझे तो सच्चा लगता है । |
10:38, 28 सितम्बर 2007 के समय का अवतरण
राग बिलावल
देखौ री! जसुमति बौरानी ।
घर घर हाथ दिखावति डोलति,गोद लिए गोपाल बिनानी ॥
जानत नाहिं जगतगुरु माधव, इहिं आए आपदा नसानी ।
जाकौ नाउँ सक्ति पुनि जाकी, ताकौं देत मंत्र पढ़ि पानी॥
अखिल ब्रह्मंड उदर गत जाकैं, जाकी जोति जल-थलहिं समानी ।
सूर सकल साँची मोहि लागति, जो कछु कही गर्ग मुख बानी ॥
सूरदास जी कहते हैं - (गोपियाँ कहती हैं -) देखो तो सखी ! यशोदा जी पगला गयी हैं । `ये अनजान बनी गोपाल को गोद में लिये घर-घर उनके सिर पर (आशीर्वाद का) हाथ रखवाती घूम रही हैं । जानती नहीं कि ये तो साक्षात् जगत्-पूज्य लक्ष्मीकान्त हैं । इनके (गोकुल में) आने से ही (हमारी) सब आपत्तियाँ दूर हो गयी हैं, जिसके नाम ही मन्त्र हैं और (उन मंत्रों में) जिसकी शक्ति है, उसी के ऊपर मन्त्र पढ़ कर जल के छींटे देती हैं । समस्त ब्रह्माण्ड जिसके उदर में हैं जल-स्थल में सर्वत्र जिसकी ज्योति व्याप्त है, वही सब मुझे तो सच्चा लगता है ।