भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सही अस्तित्व / बृजलाल रामदीन "करुण"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बृजलाल रामदीन "करुण" }} {{KKCatKavita}} <poem> झरत...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=बृजलाल रामदीन "करुण"  
 
|रचनाकार=बृजलाल रामदीन "करुण"  
 
}}
 
}}
{{KKCatKavita}}
+
{{KKCatKavita}}{{KKCatMauritiusRachna}}
 
<poem>
 
<poem>
 
 
झरते चूने के कण
 
झरते चूने के कण
 
आँखों का वह आना
 
आँखों का वह आना

07:32, 7 जून 2012 के समय का अवतरण

झरते चूने के कण
आँखों का वह आना
जलन, चौंधियाना
मलबे के नचे दबे कंधे
किंकियाती पुलियाँ
तनी रस्सियाँ
कड़ी धूप, छालेदार हाथ
नंगी पीठ, बरसते कोड़े
आसमाँ पर उठते तराशेपत्थर
दबते हृदय, वे फूलती साँसें
आकस्मिक मौत का आतंक
उनके वे सार घुटते क्षण....
गगनचुम्बी कारखाने की चिमनियाँ
वृहत चूने की भट्ठियाँ
भीमकाय पाषाणी मेड़
कर्मवीरता के सारे प्रतीक
बनाम उनके मकबरे, समाधियाँ
आज भी हरेक पल जगातीं
कुलियाँ का दुखड़ा रोती
सिसकती....
अपना सही अस्तितव ढूँढती
पर.....