भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आप जो आए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
बदरा छाए । | बदरा छाए । | ||
148 | 148 | ||
− | + | हृत्-तन्त्री पर | |
बजा राग सुहाना | बजा राग सुहाना | ||
आपका आना । | आपका आना । | ||
− | + | 149 | |
− | + | प्यारे हैं रूप | |
− | + | माँ,बेटी, बहिन | |
सर्दी की धूप । | सर्दी की धूप । | ||
− | + | 150 | |
− | + | मुझे न भाया | |
चतुर व सयाना | चतुर व सयाना | ||
मैं लौट आया । | मैं लौट आया । | ||
− | + | 151 | |
धर्म के खेल | धर्म के खेल | ||
धधकती आग में | धधकती आग में | ||
डालते तेल । | डालते तेल । | ||
− | + | 152 | |
− | + | गंगा नहाए | |
लाखों बार फिर भी | लाखों बार फिर भी | ||
मैल न जाए । | मैल न जाए । | ||
<poem> | <poem> |
00:50, 2 मई 2014 का अवतरण
147
आप जो आए
मन-मरुभूमि में
बदरा छाए ।
148
हृत्-तन्त्री पर
बजा राग सुहाना
आपका आना ।
149
प्यारे हैं रूप
माँ,बेटी, बहिन
सर्दी की धूप ।
150
मुझे न भाया
चतुर व सयाना
मैं लौट आया ।
151
धर्म के खेल
धधकती आग में
डालते तेल ।
152
गंगा नहाए
लाखों बार फिर भी
मैल न जाए ।