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"जै गोबिंद माधव मुकुंद हरि / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

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राग भैरव  
 
राग भैरव  
  
जै गोबिंद माधव मुकुंद हरि ।कृपा-सिंधु कल्यान कंस -अरि ।
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जै गोबिंद माधव मुकुंद हरि ।कृपा-सिंधु कल्यान कंस -अरि ।<br>
प्रनतपाल केसव कमलापति । कृष्न कमल-लोचन अगतिनि गति ॥
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प्रनतपाल केसव कमलापति । कृष्न कमल-लोचन अगतिनि गति ॥<br>
रामचन्द्र राजीव-नैन बर । सरन साधु श्रीपति सारँगधर ।
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रामचन्द्र राजीव-नैन बर । सरन साधु श्रीपति सारँगधर ।<br>
बनमाली बामन बीठल बल । बासुदेव बासी ब्रज-भूतल ॥
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बनमाली बामन बीठल बल । बासुदेव बासी ब्रज-भूतल ॥<br>
खर-दूषन-त्रिसिरासुर-खंडन । चरन-चिन्ह दंडक-भुव-मंडन ।
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खर-दूषन-त्रिसिरासुर-खंडन । चरन-चिन्ह दंडक-भुव-मंडन ।<br>
बकी-दवन बक-बदन-बिदारन । बरुन-बिषाद नंद-निस्तारन ॥
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बकी-दवन बक-बदन-बिदारन । बरुन-बिषाद नंद-निस्तारन ॥<br>
रिषि-मष-त्रान ताड़का-तारक । बन बसि तात-बचन-प्रतिपालक ।
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रिषि-मष-त्रान ताड़का-तारक । बन बसि तात-बचन-प्रतिपालक ।<br>
काली-दवन केसि-कर-पातन । अघ-अरिष्ट-धेनुक-अनुघातक ॥
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काली-दवन केसि-कर-पातन । अघ-अरिष्ट-धेनुक-अनुघातक ॥<br>
रघुपति प्रबल पिनाक बिभंजन । जग-हित जनक-सुता-मन रंजन ।
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रघुपति प्रबल पिनाक बिभंजन । जग-हित जनक-सुता-मन रंजन ।<br>
गोकुल-पति गिरिधर गुन-सागर । गोपी-रवन रास-रति-नागर ॥
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गोकुल-पति गिरिधर गुन-सागर । गोपी-रवन रास-रति-नागर ॥<br>
करुनामय कपि-कुल-हितकारी । बालि-बिरोधि कपट-मृग-हारी ।
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करुनामय कपि-कुल-हितकारी । बालि-बिरोधि कपट-मृग-हारी ।<br>
गुप्त गोप-कन्या-ब्रत-पूरन । द्विज-नारी दरसन दुख चूरन ॥
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गुप्त गोप-कन्या-ब्रत-पूरन । द्विज-नारी दरसन दुख चूरन ॥<br>
रावन-कुंभकरन-सिर-छेदन । तरुबर सात एक सर भेदन ।
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रावन-कुंभकरन-सिर-छेदन । तरुबर सात एक सर भेदन ।<br>
संखचूड़-चानूर-सँहारन । सक्र कहै मम रच्छा-कारन ॥
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संखचूड़-चानूर-सँहारन । सक्र कहै मम रच्छा-कारन ॥<br>
उत्तर-क्रिया गीध की करी । दरसन दै सबरी उद्धरी।
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उत्तर-क्रिया गीध की करी । दरसन दै सबरी उद्धरी।<br>
जे पद सदा संभु-हितकारी । जे पद परसि सुरसरी गारी ॥
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जे पद सदा संभु-हितकारी । जे पद परसि सुरसरी गारी ॥<br>
जे पद रमा हृदय नहिं टारैं । जे पद तिहूँ भुवन प्रतिपारैं ।
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जे पद रमा हृदय नहिं टारैं । जे पद तिहूँ भुवन प्रतिपारैं ।<br>
जे पद अहि फन-फन प्रति धारी । जे पद बृंदा-बिपिन-बिहारी ॥
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जे पद अहि फन-फन प्रति धारी । जे पद बृंदा-बिपिन-बिहारी ॥<br>
जे पद सकटासुर-संहारी । जे पद पांडव-गृह पग धारी ।
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जे पद सकटासुर-संहारी । जे पद पांडव-गृह पग धारी ।<br>
जे पद रज गौतम-तिय-तारी । जे पद भक्तनि के सुखकारी ॥
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जे पद रज गौतम-तिय-तारी । जे पद भक्तनि के सुखकारी ॥<br>
सूरदास सुर जाँचत ते पद । करहु कृपा अपने जन पर सद ॥
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सूरदास सुर जाँचत ते पद । करहु कृपा अपने जन पर सद ॥<br>
 
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भावार्थ :-- गोविन्द! माधव! हरि! कृपासागर! कल्याणमय! कंसके शत्रु! आपकी जय हो !केशव ! लक्ष्मीपति ! नाथ! आप शरणागत का पालन करने वाले हैं । कमललोचन श्रीकृष्ण! जिनका कोई सहारा नहीं है, उनके आप ही सहारे हैं । (आप ही) श्रेष्ठ पद्मालोचन श्रीरामचन्द्र हैं, साधु पुरुषों के आश्रय शार्ङ्गधनुषधारी लक्षमीकान्त हैं । (आप ही) वनमाली, वामन, विट्ठल, बलराम और वासुदेव हैं, जो व्रजभूमि में निवास कर रहे हैं । (आप ही) खरदूषण तथा त्रिशिरा आदि राक्षसों के विनाशक तथा अपने चरण-चिह्नों से दण्डक वन की भूमि को सुशोभित करने वाले हैं । (आप) पूतना का शासन करने वाले, बकासुर का मुख फाड़ देने वाले तथा वरुण के क्लेश से (वरुण के दूत द्वारा पकड़कर ले जाये जाने पर) नन्दबाबा का छुटकारा कराने वाले हैं । (आप रामावतार में ) महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करने वाले, ताड़का राक्षसी का उद्धार करने वाले तथा वन में (चौदह वर्ष) रहकर पिता की आज्ञा का पालन करने वाले हैं । (आप ही) कालियनाग का मर्दन करने वाले, केशी राक्षस को मारने वाले तथा अघासुर, अरिष्टासुर एवं धेनुकासुर का वध करने वाले हैं । (आप ही) अत्यन्त सुदृढ़ शिव धनुष पिनाक को तोड़ने वाले, संसार के हितकारी एवं श्रीजानकी जी का मनोरञ्जन करने वाले श्रीरघुनाथ हैं । (आप ही) गोकुल के स्वामी, गोवर्धन को धारण करने वाले, गुणों के सागर, रास क्रीड़ा में परम चतुर गोपिकारमण हैं । (आप)करूणामय कपिकुल के हितकारी, बाली के शत्रु तथा कपट से मृग बने मारीच को मारने वाले हैं (और आप ही अपने को पति रूप में प्राप्त करने के उद्देश्य से किये गये) गोपकुमारियों के गुप्त व्रत को पूर्ण करने वाले तथा ब्राह्मणपत्नियों को दर्शन देकर उनके दुःख को नष्ट करने वाले हैं । (आप ही) रावण तथा कुम्भकर्ण का मस्तक काटने वाले तथा एक ही बाण से सात ताल-वृक्षों को भेदन करने वाले हैं। (आप ही) शंखचूड़ तथाचाणूर का संहार करने वाले हैं तथा आपको ही इंद्र अपनी रक्षा करने वाला कहते हैं । (आपने रामावतार में) गीधराज (जटायु) की अन्त्येष्टि क्रिया की तथा दर्शन देकर शबरी का उद्धार किया । (आपके) जो चरण शंकर जी के सदा हितकारी (ध्येय) हैं, जिन चरणों का स्पर्श करके गंगा जी प्रकट हुई जिन चरणों को लक्ष्मी जी (कभी) हृदय से हटाती (ही) नहीं, जो चरण तीनों लोकों का प्रतिपालन करते हैं, जिन चरणों को आपने कालियनाग के एक-एक फण पर रखा, जो चरण वृन्दावन में क्रीड़ा करते घूमे, जिन चरणों से (छकड़ा उलटकर) आपने शकटासुर का संहार किया, जो चरण पाण्डवों के घर पधारे, जिन चरणों की धूलि गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या का उद्धार करने वाली है, जो चरण सदा ही भक्तों का मंगल करने वाले हैं, हे देव ! सूरदास उन्हीं चरणों में याचना करता है कि आप अपने (इस) सेवक पर सदा कृपा करते रहें ।
 
भावार्थ :-- गोविन्द! माधव! हरि! कृपासागर! कल्याणमय! कंसके शत्रु! आपकी जय हो !केशव ! लक्ष्मीपति ! नाथ! आप शरणागत का पालन करने वाले हैं । कमललोचन श्रीकृष्ण! जिनका कोई सहारा नहीं है, उनके आप ही सहारे हैं । (आप ही) श्रेष्ठ पद्मालोचन श्रीरामचन्द्र हैं, साधु पुरुषों के आश्रय शार्ङ्गधनुषधारी लक्षमीकान्त हैं । (आप ही) वनमाली, वामन, विट्ठल, बलराम और वासुदेव हैं, जो व्रजभूमि में निवास कर रहे हैं । (आप ही) खरदूषण तथा त्रिशिरा आदि राक्षसों के विनाशक तथा अपने चरण-चिह्नों से दण्डक वन की भूमि को सुशोभित करने वाले हैं । (आप) पूतना का शासन करने वाले, बकासुर का मुख फाड़ देने वाले तथा वरुण के क्लेश से (वरुण के दूत द्वारा पकड़कर ले जाये जाने पर) नन्दबाबा का छुटकारा कराने वाले हैं । (आप रामावतार में ) महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करने वाले, ताड़का राक्षसी का उद्धार करने वाले तथा वन में (चौदह वर्ष) रहकर पिता की आज्ञा का पालन करने वाले हैं । (आप ही) कालियनाग का मर्दन करने वाले, केशी राक्षस को मारने वाले तथा अघासुर, अरिष्टासुर एवं धेनुकासुर का वध करने वाले हैं । (आप ही) अत्यन्त सुदृढ़ शिव धनुष पिनाक को तोड़ने वाले, संसार के हितकारी एवं श्रीजानकी जी का मनोरञ्जन करने वाले श्रीरघुनाथ हैं । (आप ही) गोकुल के स्वामी, गोवर्धन को धारण करने वाले, गुणों के सागर, रास क्रीड़ा में परम चतुर गोपिकारमण हैं । (आप)करूणामय कपिकुल के हितकारी, बाली के शत्रु तथा कपट से मृग बने मारीच को मारने वाले हैं (और आप ही अपने को पति रूप में प्राप्त करने के उद्देश्य से किये गये) गोपकुमारियों के गुप्त व्रत को पूर्ण करने वाले तथा ब्राह्मणपत्नियों को दर्शन देकर उनके दुःख को नष्ट करने वाले हैं । (आप ही) रावण तथा कुम्भकर्ण का मस्तक काटने वाले तथा एक ही बाण से सात ताल-वृक्षों को भेदन करने वाले हैं। (आप ही) शंखचूड़ तथाचाणूर का संहार करने वाले हैं तथा आपको ही इंद्र अपनी रक्षा करने वाला कहते हैं । (आपने रामावतार में) गीधराज (जटायु) की अन्त्येष्टि क्रिया की तथा दर्शन देकर शबरी का उद्धार किया । (आपके) जो चरण शंकर जी के सदा हितकारी (ध्येय) हैं, जिन चरणों का स्पर्श करके गंगा जी प्रकट हुई जिन चरणों को लक्ष्मी जी (कभी) हृदय से हटाती (ही) नहीं, जो चरण तीनों लोकों का प्रतिपालन करते हैं, जिन चरणों को आपने कालियनाग के एक-एक फण पर रखा, जो चरण वृन्दावन में क्रीड़ा करते घूमे, जिन चरणों से (छकड़ा उलटकर) आपने शकटासुर का संहार किया, जो चरण पाण्डवों के घर पधारे, जिन चरणों की धूलि गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या का उद्धार करने वाली है, जो चरण सदा ही भक्तों का मंगल करने वाले हैं, हे देव ! सूरदास उन्हीं चरणों में याचना करता है कि आप अपने (इस) सेवक पर सदा कृपा करते रहें ।

23:13, 28 सितम्बर 2007 के समय का अवतरण

राग भैरव

जै गोबिंद माधव मुकुंद हरि ।कृपा-सिंधु कल्यान कंस -अरि ।
प्रनतपाल केसव कमलापति । कृष्न कमल-लोचन अगतिनि गति ॥
रामचन्द्र राजीव-नैन बर । सरन साधु श्रीपति सारँगधर ।
बनमाली बामन बीठल बल । बासुदेव बासी ब्रज-भूतल ॥
खर-दूषन-त्रिसिरासुर-खंडन । चरन-चिन्ह दंडक-भुव-मंडन ।
बकी-दवन बक-बदन-बिदारन । बरुन-बिषाद नंद-निस्तारन ॥
रिषि-मष-त्रान ताड़का-तारक । बन बसि तात-बचन-प्रतिपालक ।
काली-दवन केसि-कर-पातन । अघ-अरिष्ट-धेनुक-अनुघातक ॥
रघुपति प्रबल पिनाक बिभंजन । जग-हित जनक-सुता-मन रंजन ।
गोकुल-पति गिरिधर गुन-सागर । गोपी-रवन रास-रति-नागर ॥
करुनामय कपि-कुल-हितकारी । बालि-बिरोधि कपट-मृग-हारी ।
गुप्त गोप-कन्या-ब्रत-पूरन । द्विज-नारी दरसन दुख चूरन ॥
रावन-कुंभकरन-सिर-छेदन । तरुबर सात एक सर भेदन ।
संखचूड़-चानूर-सँहारन । सक्र कहै मम रच्छा-कारन ॥
उत्तर-क्रिया गीध की करी । दरसन दै सबरी उद्धरी।
जे पद सदा संभु-हितकारी । जे पद परसि सुरसरी गारी ॥
जे पद रमा हृदय नहिं टारैं । जे पद तिहूँ भुवन प्रतिपारैं ।
जे पद अहि फन-फन प्रति धारी । जे पद बृंदा-बिपिन-बिहारी ॥
जे पद सकटासुर-संहारी । जे पद पांडव-गृह पग धारी ।
जे पद रज गौतम-तिय-तारी । जे पद भक्तनि के सुखकारी ॥
सूरदास सुर जाँचत ते पद । करहु कृपा अपने जन पर सद ॥

भावार्थ :-- गोविन्द! माधव! हरि! कृपासागर! कल्याणमय! कंसके शत्रु! आपकी जय हो !केशव ! लक्ष्मीपति ! नाथ! आप शरणागत का पालन करने वाले हैं । कमललोचन श्रीकृष्ण! जिनका कोई सहारा नहीं है, उनके आप ही सहारे हैं । (आप ही) श्रेष्ठ पद्मालोचन श्रीरामचन्द्र हैं, साधु पुरुषों के आश्रय शार्ङ्गधनुषधारी लक्षमीकान्त हैं । (आप ही) वनमाली, वामन, विट्ठल, बलराम और वासुदेव हैं, जो व्रजभूमि में निवास कर रहे हैं । (आप ही) खरदूषण तथा त्रिशिरा आदि राक्षसों के विनाशक तथा अपने चरण-चिह्नों से दण्डक वन की भूमि को सुशोभित करने वाले हैं । (आप) पूतना का शासन करने वाले, बकासुर का मुख फाड़ देने वाले तथा वरुण के क्लेश से (वरुण के दूत द्वारा पकड़कर ले जाये जाने पर) नन्दबाबा का छुटकारा कराने वाले हैं । (आप रामावतार में ) महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करने वाले, ताड़का राक्षसी का उद्धार करने वाले तथा वन में (चौदह वर्ष) रहकर पिता की आज्ञा का पालन करने वाले हैं । (आप ही) कालियनाग का मर्दन करने वाले, केशी राक्षस को मारने वाले तथा अघासुर, अरिष्टासुर एवं धेनुकासुर का वध करने वाले हैं । (आप ही) अत्यन्त सुदृढ़ शिव धनुष पिनाक को तोड़ने वाले, संसार के हितकारी एवं श्रीजानकी जी का मनोरञ्जन करने वाले श्रीरघुनाथ हैं । (आप ही) गोकुल के स्वामी, गोवर्धन को धारण करने वाले, गुणों के सागर, रास क्रीड़ा में परम चतुर गोपिकारमण हैं । (आप)करूणामय कपिकुल के हितकारी, बाली के शत्रु तथा कपट से मृग बने मारीच को मारने वाले हैं (और आप ही अपने को पति रूप में प्राप्त करने के उद्देश्य से किये गये) गोपकुमारियों के गुप्त व्रत को पूर्ण करने वाले तथा ब्राह्मणपत्नियों को दर्शन देकर उनके दुःख को नष्ट करने वाले हैं । (आप ही) रावण तथा कुम्भकर्ण का मस्तक काटने वाले तथा एक ही बाण से सात ताल-वृक्षों को भेदन करने वाले हैं। (आप ही) शंखचूड़ तथाचाणूर का संहार करने वाले हैं तथा आपको ही इंद्र अपनी रक्षा करने वाला कहते हैं । (आपने रामावतार में) गीधराज (जटायु) की अन्त्येष्टि क्रिया की तथा दर्शन देकर शबरी का उद्धार किया । (आपके) जो चरण शंकर जी के सदा हितकारी (ध्येय) हैं, जिन चरणों का स्पर्श करके गंगा जी प्रकट हुई जिन चरणों को लक्ष्मी जी (कभी) हृदय से हटाती (ही) नहीं, जो चरण तीनों लोकों का प्रतिपालन करते हैं, जिन चरणों को आपने कालियनाग के एक-एक फण पर रखा, जो चरण वृन्दावन में क्रीड़ा करते घूमे, जिन चरणों से (छकड़ा उलटकर) आपने शकटासुर का संहार किया, जो चरण पाण्डवों के घर पधारे, जिन चरणों की धूलि गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या का उद्धार करने वाली है, जो चरण सदा ही भक्तों का मंगल करने वाले हैं, हे देव ! सूरदास उन्हीं चरणों में याचना करता है कि आप अपने (इस) सेवक पर सदा कृपा करते रहें ।