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"हिंदी में बोलूँ / ताराप्रकाश जोशी" के अवतरणों में अंतर

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'''हिंदी में बोलूँ'''
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जो सोचूँ हिन्दी में सोचूँ
जो सोचूँ हिंदी में सोचूँ
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जब बोलूँ हिन्दी में बोलूँ
जब बोलूँ हिंदी में बोलूँ
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जन्म मिला हिंदी के घर में,
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जन्म मिला हिन्दी के घर में,
हिंदी दृश्य-अदृश्य दिखाए।
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हिन्दी दृश्य-अदृश्य दिखाए ।
 
जैसे माँ अपने बच्चे को,
 
जैसे माँ अपने बच्चे को,
 
अग-जग की पहचान कराए।
 
अग-जग की पहचान कराए।
 
ओझल-ओझल भीतर का सच,
 
ओझल-ओझल भीतर का सच,
जब खोलूँ हिंदी में खोलूँ।।
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जब खोलूँ हिन्दी में खोलूँ ।।
  
निपट मूढ़ हूँ पर हिंदी ने,
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निपट मूढ़ हूँ पर हिन्दी ने,
मुझसे नए गीत रचवाए।
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मुझसे नए गीत रचवाए ।
 
जैसे स्वयं शारदा माता,
 
जैसे स्वयं शारदा माता,
गूँगे से गायन करवाए।
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गूँगे से गायन करवाए ।
 
आत्मा के आँसू का अमृत,
 
आत्मा के आँसू का अमृत,
जब घोलूँ हिंदी में घोलूँ।।
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जब घोलूँ हिन्दी में घोलूँ ।।
  
 
शब्दों की दुनिया में मैंने,
 
शब्दों की दुनिया में मैंने,
हिंदी के बल अलख जगाए।
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हिन्दी के बल अलख जगाए ।
 
जैसे दीपशिखा के बिरवे
 
जैसे दीपशिखा के बिरवे
कोई ठंडी रात बिताए।
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कोई ठण्डी रात बिताए ।
जो कुछ हूँ हिंदी से हूँ मैं,
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जो कुछ हूँ हिन्दी से हूँ मैं,
जो हो लूँ हिंदी से हो लूँ।।
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जो हो लूँ हिन्दी से हो लूँ ।।
  
हिंदी सहज क्रांति की भाषा,
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हिन्दी सहज क्रान्ति की भाषा,
यह विप्लव की अकथ कहानी।
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यह विप्लव की अकथ कहानी ।
 
मैकाले पर भारतेंदु की
 
मैकाले पर भारतेंदु की
अमर विजय की अमिट निशानी।
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अमर विजय की अमिट निशानी ।
 
शेष गुलामी के दाग़ों को,
 
शेष गुलामी के दाग़ों को,
फिर धो लूँ हिंदी से धो लूँ।।
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फिर धो लूँ हिन्दी से धो लूँ ।।
  
हिंदी के घर फिर-फिर जन्मूँ
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हिन्दी के घर फिर-फिर जन्मूँ
 
जन्मों का क्रम चलता जाए,
 
जन्मों का क्रम चलता जाए,
हिंदी का इतना ऋण मुझ पर
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हिन्दी का इतना ऋण मुझ पर
 
साँसों-साँसों चुकता जाए
 
साँसों-साँसों चुकता जाए
जब जागूँ हिंदी में जागूँ
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जब जागूँ हिन्दी में जागूँ
जब सो लूँ हिंदी में सो लूँ।।
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जब सो लूँ हिन्दी में सो लूँ ।।
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15:30, 6 अक्टूबर 2023 का अवतरण

जो सोचूँ हिन्दी में सोचूँ
जब बोलूँ हिन्दी में बोलूँ

जन्म मिला हिन्दी के घर में,
हिन्दी दृश्य-अदृश्य दिखाए ।
जैसे माँ अपने बच्चे को,
अग-जग की पहचान कराए।
ओझल-ओझल भीतर का सच,
जब खोलूँ हिन्दी में खोलूँ ।।

निपट मूढ़ हूँ पर हिन्दी ने,
मुझसे नए गीत रचवाए ।
जैसे स्वयं शारदा माता,
गूँगे से गायन करवाए ।
आत्मा के आँसू का अमृत,
जब घोलूँ हिन्दी में घोलूँ ।।

शब्दों की दुनिया में मैंने,
हिन्दी के बल अलख जगाए ।
जैसे दीपशिखा के बिरवे
कोई ठण्डी रात बिताए ।
जो कुछ हूँ हिन्दी से हूँ मैं,
जो हो लूँ हिन्दी से हो लूँ ।।

हिन्दी सहज क्रान्ति की भाषा,
यह विप्लव की अकथ कहानी ।
मैकाले पर भारतेंदु की
अमर विजय की अमिट निशानी ।
शेष गुलामी के दाग़ों को,
फिर धो लूँ हिन्दी से धो लूँ ।।

हिन्दी के घर फिर-फिर जन्मूँ
जन्मों का क्रम चलता जाए,
हिन्दी का इतना ऋण मुझ पर
साँसों-साँसों चुकता जाए
जब जागूँ हिन्दी में जागूँ
जब सो लूँ हिन्दी में सो लूँ ।।