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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : *नया वर्ष* '''रचनाकार:''' [[अनिल जनविजय]] </div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : स्त्री की तीर्थयात्रा '''रचनाकार:''' [[विश्वनाथ प्रसाद तिवारी]] </div>
 
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(आज 28 जुलाई को
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सवेरे-सवेरे
आदरणीय श्री अनिल जनविजय जी
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उसने बर्तन साफ़ किए
का जन्मदिवस है
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घर-भर के जूठे बर्तन
उनके शतायु होने की कामना
+
झाड़ू-पोंछे के बाद
के साथ प्रस्तुत है उनकी कविता)
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बेटियों को संवार कर
 +
स्कूल रवाना किया
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सबके लिए बनाई चाय
  
नया वर्ष
+
जब वह छोटा बच्चा ज़ोर-ज़ोर रोने लगा
संगीत की बहती नदी हो
+
वह बीच में उठी पूजा छोड़कर
गेहूँ की बाली दूध से भरी हो
+
उसका सू-सू साफ़ किया
अमरूद की टहनी फूलों से लदी हो
+
खेलते हुए बच्चों की किलकारी हो नया वर्ष
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नया वर्ष
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दोपहर भोजन के आख़िरी दौर में
सुबह का उगता सूरज हो
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आ गए एक मेहमान
हर्षोल्लास में चहकता पाखी
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दाल में पानी मिला कर
नन्हे बच्चों की पाठशाला हो
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किया उसने अतिथि-सत्कार
निराला-नागार्जुन की कविता
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और बैठ गई चटनी के साथ
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बची हुई रोटी लेकर
  
नया वर्ष
+
क्षण भर चाहती थी वह आराम
चकनाचूर होता हिमखंड हो
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कि आ गईं बेटियाँ स्कूल से मुरझाई हुईं
धरती पर जीवन अनंत हो
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उनके टंट-घंट में जुटी
रक्तस्नात भीषण दिनों के बाद
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फिर जुटी संझा की रसोई में
हर कोंपल, हर कली पर छाया वसंत हो
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(रचनाकाल : 1995)
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रात में सबके बाद खाने बैठी
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अब की रोटी के साथ थी सब्ज़ी भी
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जिसे पति ने अपनी रुचि से ख़रीदा था
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बिस्तर पर गिरने से पहले
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वह अकेले में थोड़ी देर रोई
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अपने स्वर्गीय बाबा की याद में
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फिर पति की बाँहों में
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सोचते-सोचते बेटियों के ब्याह के बारे में
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ग़ायब हो गई सपनों की दुनिया में
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और नींद में ही पूरी कर ली उसने
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सभी तीर्थों की यात्रा ।
 
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13:14, 3 अगस्त 2012 का अवतरण

Lotus-48x48.png
सप्ताह की कविता
शीर्षक : स्त्री की तीर्थयात्रा रचनाकार: विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
सवेरे-सवेरे
उसने बर्तन साफ़ किए
घर-भर के जूठे बर्तन
झाड़ू-पोंछे के बाद
बेटियों को संवार कर
स्कूल रवाना किया
सबके लिए बनाई चाय

जब वह छोटा बच्चा ज़ोर-ज़ोर रोने लगा
वह बीच में उठी पूजा छोड़कर
उसका सू-सू साफ़ किया

दोपहर भोजन के आख़िरी दौर में
आ गए एक मेहमान
दाल में पानी मिला कर
किया उसने अतिथि-सत्कार
और बैठ गई चटनी के साथ
बची हुई रोटी लेकर

क्षण भर चाहती थी वह आराम
कि आ गईं बेटियाँ स्कूल से मुरझाई हुईं
उनके टंट-घंट में जुटी
फिर जुटी संझा की रसोई में

रात में सबके बाद खाने बैठी
अब की रोटी के साथ थी सब्ज़ी भी
जिसे पति ने अपनी रुचि से ख़रीदा था

बिस्तर पर गिरने से पहले
वह अकेले में थोड़ी देर रोई
अपने स्वर्गीय बाबा की याद में

फिर पति की बाँहों में
सोचते-सोचते बेटियों के ब्याह के बारे में
ग़ायब हो गई सपनों की दुनिया में
और नींद में ही पूरी कर ली उसने
सभी तीर्थों की यात्रा ।