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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : *नया वर्ष* स्त्री की तीर्थयात्रा '''रचनाकार:''' [[अनिल जनविजयविश्वनाथ प्रसाद तिवारी]] </div>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
(आज 28 जुलाई को सवेरे-सवेरेआदरणीय श्री अनिल जनविजय जी उसने बर्तन साफ़ किएका जन्मदिवस है उनके शतायु होने की कामना घर-भर के जूठे बर्तनझाड़ू-पोंछे के साथ प्रस्तुत है उनकी कविता) बादबेटियों को संवार करस्कूल रवाना कियासबके लिए बनाई चाय
नया वर्षजब वह छोटा बच्चा ज़ोर-ज़ोर रोने लगासंगीत की बहती नदी होवह बीच में उठी पूजा छोड़करगेहूँ की बाली दूध से भरी होअमरूद की टहनी फूलों से लदी होखेलते हुए बच्चों की किलकारी हो नया वर्षउसका सू-सू साफ़ किया
नया वर्षदोपहर भोजन के आख़िरी दौर मेंसुबह का उगता सूरज होआ गए एक मेहमानहर्षोल्लास दाल में चहकता पाखीपानी मिला करनन्हे बच्चों की पाठशाला होनिरालाकिया उसने अतिथि-नागार्जुन की कवितासत्कारऔर बैठ गई चटनी के साथबची हुई रोटी लेकर
नया वर्षक्षण भर चाहती थी वह आरामचकनाचूर होता हिमखंड होकि आ गईं बेटियाँ स्कूल से मुरझाई हुईंधरती पर जीवन अनंत होउनके टंट-घंट में जुटीरक्तस्नात भीषण दिनों के बादहर कोंपल, हर कली पर छाया वसंत होफिर जुटी संझा की रसोई में
(रचनाकाल : 1995) रात में सबके बाद खाने बैठीअब की रोटी के साथ थी सब्ज़ी भीजिसे पति ने अपनी रुचि से ख़रीदा था बिस्तर पर गिरने से पहलेवह अकेले में थोड़ी देर रोईअपने स्वर्गीय बाबा की याद में फिर पति की बाँहों मेंसोचते-सोचते बेटियों के ब्याह के बारे मेंग़ायब हो गई सपनों की दुनिया मेंऔर नींद में ही पूरी कर ली उसनेसभी तीर्थों की यात्रा ।
</pre></center></div>
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