"आओ एक खेल खेलें / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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आओ, एक खेल खेलें! | आओ, एक खेल खेलें! | ||
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पहला पातक अपना ही हो परिणय, यौवन-मधु का! | पहला पातक अपना ही हो परिणय, यौवन-मधु का! | ||
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दृढ़ नाग-पाश में बाँधे पाताल-लोक ले जावे! | दृढ़ नाग-पाश में बाँधे पाताल-लोक ले जावे! | ||
निज जीवन का सुख ले लें! | निज जीवन का सुख ले लें! | ||
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मत मिथ्या व्रीडा से तुम नत करो दीप्त मुख अपना- | मत मिथ्या व्रीडा से तुम नत करो दीप्त मुख अपना- | ||
मिथ्या भय की कम्पन में मत उलझाओ सुख-सपना! | मिथ्या भय की कम्पन में मत उलझाओ सुख-सपना! | ||
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उन के आज्ञापन की हम मुँहजोही ही न करेंगे! | उन के आज्ञापन की हम मुँहजोही ही न करेंगे! | ||
हम उत्पीडऩ क्यों झेलें? | हम उत्पीडऩ क्यों झेलें? | ||
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हम उन के सही खिलौने- क्यों अपना खेल भुलावें? | हम उन के सही खिलौने- क्यों अपना खेल भुलावें? | ||
कन्दरा किसी में अपनी हम क्रीडास्थली बनावें! | कन्दरा किसी में अपनी हम क्रीडास्थली बनावें! |
22:40, 29 जुलाई 2012 के समय का अवतरण
आओ, एक खेल खेलें!
मैं आदिम पुरुष बनूँगा, तुम पहली मानव-वधुका।
पहला पातक अपना ही हो परिणय, यौवन-मधु का!
पथ-विमुख करे वह, जग की कुत्सा का पात्र बनावे;
दृढ़ नाग-पाश में बाँधे पाताल-लोक ले जावे!
निज जीवन का सुख ले लें!
आओ, एक खेल खेलें!
मत मिथ्या व्रीडा से तुम नत करो दीप्त मुख अपना-
मिथ्या भय की कम्पन में मत उलझाओ सुख-सपना!
इस सुमन-कुंज से अपना प्रभु बहिष्कार कर देंगे?
उन के आज्ञापन की हम मुँहजोही ही न करेंगे!
हम उत्पीडऩ क्यों झेलें?
आओ, एक खेल खेलें!
हम उन के सही खिलौने- क्यों अपना खेल भुलावें?
कन्दरा किसी में अपनी हम क्रीडास्थली बनावें!
लज्जा, कुत्सा, पातक की पनपे वह अभिनव खेला,
परिणय की छाया में हूँ मैं तेरे साथ अकेला!
आदिम प्रेमांजलि दे लें!
आओ, एक खेल खेलें!
लाहौर किला, 26 मार्च, 1934