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खुलती आँख का सपना / अज्ञेय
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06:51, 4 अगस्त 2012
विहग-स्वर सुन जाग देखा, उषा का आलोक छाया,
झिप गयी तब
रूपकत्र्री
रूपकतरी
वासना की मधुर माया;
स्वप्न में छिन, सतत सुधि में, सुप्त-जागृत तुम्हें पाया-
चेतना अधजगी, पलकें लगीं तेरी याद में कँपने!
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