"लाल्टू" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
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१ | १ | ||
− | वह जो बार बार पास आता है | + | वह जो बार बार पास आता है<br> |
− | क्या उसे पता है वह क्या चाहता है | + | क्या उसे पता है वह क्या चाहता है<br><br> |
− | वह जाता है | + | वह जाता है<br> |
− | लौटकर नाराज़गी के मुहावरों | + | लौटकर नाराज़गी के मुहावरों <br> |
− | के किले गढ़ | + | के किले गढ़<br> |
− | भेजता है शब्दों की पतंगें | + | भेजता है शब्दों की पतंगें<br><br> |
− | मैं समझता हूँ मैं क्या चाहता हूँ | + | मैं समझता हूँ मैं क्या चाहता हूँ<br> |
− | क्या सचमुच मुझे पता है मैं क्या चाहता हूँ | + | क्या सचमुच मुझे पता है मैं क्या चाहता हूँ<br><br> |
− | जैसे चाँद पर मुझे कविता लिखनी है | + | जैसे चाँद पर मुझे कविता लिखनी है<br> |
− | वैसे ही लिखनी है उस पर भी | + | वैसे ही लिखनी है उस पर भी<br> |
− | मज़दूरों के साथ बिताई एक शाम की | + | मज़दूरों के साथ बिताई एक शाम की<br> |
− | चाँदनी में लौटते हुए | + | चाँदनी में लौटते हुए <br> |
− | एक चाँद उसके लिए देखता हूँ | + | एक चाँद उसके लिए देखता हूँ<br><br> |
− | चाँदनी हम दोनों को छूती | + | चाँदनी हम दोनों को छूती<br> |
− | पार करती असंख्य वन-पर्वत | + | पार करती असंख्य वन-पर्वत<br> |
− | बीहड़ों से बीहड़ इंसानी दरारों | + | बीहड़ों से बीहड़ इंसानी दरारों <br> |
− | को पार करती चाँदनी | + | को पार करती चाँदनी<br><br> |
− | उस पर कविता लिखते हुए | + | उस पर कविता लिखते हुए <br> |
− | लिखता हूँ तांडव गीत | + | लिखता हूँ तांडव गीत<br> |
− | तोड़ दो, तोड़ दो, सभी सीमाओं को तोड़ दो। | + | तोड़ दो, तोड़ दो, सभी सीमाओं को तोड़ दो।<br><br> |
२ | २ | ||
− | कराची में भी कोई चाँद देखता है | + | कराची में भी कोई चाँद देखता है<br> |
− | युद्ध सरदार परेशान | + | युद्ध सरदार परेशान<br> |
− | ऐेसे दिनों में हम चाँद देख रहे हैं | + | ऐेसे दिनों में हम चाँद देख रहे हैं<br><br> |
− | चाँद के बारे में सबसे अच्छी खबर कि | + | चाँद के बारे में सबसे अच्छी खबर कि<br> |
− | वहाँ कोई हिंद पाक नहीं है | + | वहाँ कोई हिंद पाक नहीं है<br> |
− | चाँद ने उन्हें खारिज शब्दों की तरह कूड़ेदानी में फेंक दिया है। | + | चाँद ने उन्हें खारिज शब्दों की तरह कूड़ेदानी में फेंक दिया है।<br><br> |
− | आलोक धन्वा, तुम्हारे जुलूस में मैं हूँ, वह है | + | आलोक धन्वा, तुम्हारे जुलूस में मैं हूँ, वह है<br> |
− | चाँद की पकाई खीर खाने हम साथ बैठेंगे | + | चाँद की पकाई खीर खाने हम साथ बैठेंगे<br> |
− | बगदाद, कराची, अमृतसर, श्रीनगर जा जा | + | बगदाद, कराची, अमृतसर, श्रीनगर जा जा<br> |
− | अनधोए अंगूठों पर चिपके दाने चाटेंगे। | + | अनधोए अंगूठों पर चिपके दाने चाटेंगे।<br><br> |
३ | ३ | ||
− | चाँद से अनगिनत इच्छाएँ साझी करता हूँ | + | चाँद से अनगिनत इच्छाएँ साझी करता हूँ<br> |
− | चाँद ने मेरी बातें बहुत पहले सुन ली हैं | + | चाँद ने मेरी बातें बहुत पहले सुन ली हैं<br> |
− | फिर भी कहता हूँ | + | फिर भी कहता हूँ<br> |
− | और चाँद का हाथ | + | और चाँद का हाथ<br> |
− | अपने बालों में अनुभव करता हूँ | + | अपने बालों में अनुभव करता हूँ<br><br> |
− | चाँद ने कागज कलम बढ़ाते हुए | + | चाँद ने कागज कलम बढ़ाते हुए<br> |
− | कविताएँ लिखने को कहा है | + | कविताएँ लिखने को कहा है<br> |
− | + | सायरेन बज रहा है। <br><br> | |
− | सायरेन बज रहा है। | + | |
४ | ४ | ||
− | मेरे लिए भी कोई सोचता है | + | मेरे लिए भी कोई सोचता है<br> |
− | अँधेरे में तारों की रोशनी में उसे देखता हूँ | + | अँधेरे में तारों की रोशनी में उसे देखता हूँ<br> |
− | दूर खिड़की पर उदास खड़ी है। दबी हुई मुस्कान | + | दूर खिड़की पर उदास खड़ी है। दबी हुई मुस्कान<br> |
− | जो दिन भर उसे दिगंत तक फैलाए हुए थी | + | जो दिन भर उसे दिगंत तक फैलाए हुए थी<br> |
− | उस वक्त बहुत दब गई है। | + | उस वक्त बहुत दब गई है।<br><br> |
− | अनगिनत सीमाओं पार खिड़की पर वह उदास है। | + | अनगिनत सीमाओं पार खिड़की पर वह उदास है।<br> |
− | उसके खयालों में मेरी कविताएँ हैं। सीमाएँ पार | + | उसके खयालों में मेरी कविताएँ हैं। सीमाएँ पार <br> |
− | करते हुए गोलीबारी में कविताएँ हैं लहूलुहान। | + | करते हुए गोलीबारी में कविताएँ हैं लहूलुहान।<br><br> |
− | वह मेरी हर कविता की शुरुआत। | + | वह मेरी हर कविता की शुरुआत।<br> |
− | वह काश्मीर के बच्चों की उदासी। | + | वह काश्मीर के बच्चों की उदासी।<br> |
− | वह मेरा बसंत, मेरा नवगीत, | + | वह मेरा बसंत, मेरा नवगीत, <br> |
− | वह मुर्झाए पौधों के फिर से खिलने सी। | + | वह मुर्झाए पौधों के फिर से खिलने सी।<br><br> |
५ | ५ | ||
− | वह जो मेरा है | + | वह जो मेरा है<br> |
− | मेरे पास होकर भी मुझ से बहुत दूर है। | + | मेरे पास होकर भी मुझ से बहुत दूर है।<br> |
− | पास आने के मेरे उसके खयाल | + | पास आने के मेरे उसके खयाल<br> |
− | आश्चर्य का छायाचित्र बन दीवार पर टँगे हैं, | + | आश्चर्य का छायाचित्र बन दीवार पर टँगे हैं,<br> |
− | द्विआयामी अस्तित्व में हम अवाक देखते हैं | + | द्विआयामी अस्तित्व में हम अवाक देखते हैं<br> |
− | हमारे बीच की ऊँची दीवार। | + | हमारे बीच की ऊँची दीवार।<br><br> |
− | ईश्वर अल्लाह तेरे नाम | + | ईश्वर अल्लाह तेरे नाम<br> |
− | अनजान लकीर के इस पार उस पार | + | अनजान लकीर के इस पार उस पार <br> |
− | उँगलियाँ छूती हैं | + | उँगलियाँ छूती हैं<br> |
− | स्पर्श पौधा बन पुकारता है | + | स्पर्श पौधा बन पुकारता है<br> |
− | स्पर्श ही अल्लाह, स्पर्श ही ईश्वर। | + | स्पर्श ही अल्लाह, स्पर्श ही ईश्वर।<br><br> |
६ | ६ | ||
− | मैं कौन हूँ? तुम कौन हो? | + | मैं कौन हूँ? तुम कौन हो?<br> |
− | मैं एक पिता देखता हूँ पितृहीन प्राण। | + | मैं एक पिता देखता हूँ पितृहीन प्राण।<br> |
− | ग्रहों को पार कर मैं आया हूँ | + | ग्रहों को पार कर मैं आया हूँ<br> |
− | एक भरपूर जीवन जीता बयालीस की बालिग उम्र | + | एक भरपूर जीवन जीता बयालीस की बालिग उम्र<br> |
− | देख रहा हूँ एक बच्चे को मेरा सीना चाहिए | + | देख रहा हूँ एक बच्चे को मेरा सीना चाहिए<br><br> |
− | उसकी निश्छलता की लहरों में मैं काँपता हूँ | + | उसकी निश्छलता की लहरों में मैं काँपता हूँ<br> |
− | मेरे एकाकी क्षणों में उसका प्रवेश सृष्टि का आरंभ है | + | मेरे एकाकी क्षणों में उसका प्रवेश सृष्टि का आरंभ है<br> |
− | मेरी दुनिया बनाते हुए वह मुस्कराता है | + | मेरी दुनिया बनाते हुए वह मुस्कराता है<br> |
− | सुनता हूँ बसंत के पूर्वाभास में पत्तियों की खड़खड़ाहट | + | सुनता हूँ बसंत के पूर्वाभास में पत्तियों की खड़खड़ाहट<br> |
− | दूर दूर से आवाज़ें आती हैं उसके होने के उल्लास में | + | दूर दूर से आवाज़ें आती हैं उसके होने के उल्लास में<br> |
− | आश्चर्य मानव संतान | + | आश्चर्य मानव संतान<br> |
− | अपनी संपूर्णता के अहसास से बलात् दूर | + | अपनी संपूर्णता के अहसास से बलात् दूर<br> |
− | उँगलियाँ उठाता है, माँगता है भोजन के लिए कुछ पैसे। | + | उँगलियाँ उठाता है, माँगता है भोजन के लिए कुछ पैसे।<br><br> |
७ | ७ | ||
− | मुड़ मुड़ उसके लिए दढ़ियल बरगद बनने की प्रतिज्ञा करता हूँ। | + | मुड़ मुड़ उसके लिए दढ़ियल बरगद बनने की प्रतिज्ञा करता हूँ।<br> |
− | सन् २००० में मेरी दाढ़ी खींचने पर धू धू लपटें उसे घेर लेंगीं। | + | सन् २००० में मेरी दाढ़ी खींचने पर धू धू लपटें उसे घेर लेंगीं।<br> |
− | मेरी नियति पहाड़ बनाने के अलावा और कुछ नहीं। | + | मेरी नियति पहाड़ बनाने के अलावा और कुछ नहीं।<br> |
− | उसकी खुली आँखों को सिरहाने तले सँजोता हूँ। | + | उसकी खुली आँखों को सिरहाने तले सँजोता हूँ।<br> |
− | उड़नखटोले पर बैठते वक्त वह मेरे पास होगा। | + | उड़नखटोले पर बैठते वक्त वह मेरे पास होगा।<br><br> |
− | युद्ध सरदारों सुनो! मैं उसे बूँद बूँद अपने सीने में सींचूँगा। | + | युद्ध सरदारों सुनो! मैं उसे बूँद बूँद अपने सीने में सींचूँगा। <br> |
− | उसे बादल बन ढक लूँगा। उसकी आँखों में आँसू बन छल छल छलकूँगा। | + | उसे बादल बन ढक लूँगा। उसकी आँखों में आँसू बन छल छल छलकूँगा।<br> |
− | उसके होंठों में विस्मय की ध्वनि तरंग बनूँगा। | + | उसके होंठों में विस्मय की ध्वनि तरंग बनूँगा। <br> |
− | तुम्हारी लपटों को मैं लगातार प्यार की बारिश बन बुझाऊँगा। | + | तुम्हारी लपटों को मैं लगातार प्यार की बारिश बन बुझाऊँगा।<br><br> |
− | पहाड़ को नंगा करते वक्त तुमने सोचा न था | + | पहाड़ को नंगा करते वक्त तुमने सोचा न था <br> |
− | पहाड़-१ | + | पहाड़-१<br> |
− | पहाड़ को कठोर मत समझो | + | पहाड़ को कठोर मत समझो<br> |
− | पहाड़ को नोचने पर | + | पहाड़ को नोचने पर<br> |
− | पहाड़ के अाँसू बह अाते हैं | + | पहाड़ के अाँसू बह अाते हैं<br> |
− | सड़कें करवट बदल | + | सड़कें करवट बदल<br> |
− | चलते-चलते रुक जाती हैं | + | चलते-चलते रुक जाती हैं<br><br> |
− | पहाड़ को | + | पहाड़ को<br> |
− | दूर से देखते हो तो | + | दूर से देखते हो तो<br> |
− | पहाड़ ऊँचा दिखता है | + | पहाड़ ऊँचा दिखता है<br><br> |
− | करीब आओ | + | करीब आओ<br> |
− | पहाड़ तुम्हें ऊपर खींचेगा | + | पहाड़ तुम्हें ऊपर खींचेगा<br> |
− | पहाड़ के ज़ख्मी सीने में | + | पहाड़ के ज़ख्मी सीने में<br> |
− | रिसते धब्बे देख | + | रिसते धब्बे देख<br> |
− | चीखो मत | + | चीखो मत<br><br> |
− | पहाड़ को नंगा करते वक्त | + | पहाड़ को नंगा करते वक्त<br> |
− | तुमने सोचा न था | + | तुमने सोचा न था<br> |
− | पहाड़ के जिस्म में भी | + | पहाड़ के जिस्म में भी<br> |
− | छिपे रहस्य हैं। | + | छिपे रहस्य हैं।<br><br> |
− | पहाड़-२ | + | पहाड़-२<br> |
− | इसलिए अब | + | इसलिए अब<br> |
− | अकेली चट्टान को | + | अकेली चट्टान को<br> |
− | पहाड़ मत समझो | + | पहाड़ मत समझो<br><br> |
− | पहाड़ तो पूरी भीड़ है | + | पहाड़ तो पूरी भीड़ है<br> |
− | उसकी धड़कनें | + | उसकी धड़कनें<br> |
− | अलग-अलग गति से | + | अलग-अलग गति से<br> |
− | बढ़ती-घटती रहती हैं | + | बढ़ती-घटती रहती हैं<br><br> |
− | अकेले पहाड़ का जमाना | + | अकेले पहाड़ का जमाना<br> |
− | बीत गया | + | बीत गया<br> |
− | अब हर ओर | + | अब हर ओर<br> |
− | पहाड़ ही पहाड़ हैं। | + | पहाड़ ही पहाड़ हैं।<br><br> |
पहाड़-३ | पहाड़-३ | ||
− | पहाड़ों पर रहने वाले लोग | + | पहाड़ों पर रहने वाले लोग<br> |
− | पहाड़ों को पसंद नहीं करते | + | पहाड़ों को पसंद नहीं करते<br> |
− | पहाड़ों के साथ | + | पहाड़ों के साथ<br> |
− | हँस लेते हैं | + | हँस लेते हैं<br> |
− | रो लेते हैं | + | रो लेते हैं<br> |
− | सोचते हैं | + | सोचते हैं<br> |
− | पहाड़ों पर आधी ज़िंदगी गुज़र गई | + | पहाड़ों पर आधी ज़िंदगी गुज़र गई<br> |
− | बाकी भी गुज़र जाएगी। | + | बाकी भी गुज़र जाएगी।<br><br> |
(मूल रचना: १९८८; एक झील थी बर्फ की - आधार प्रकाशन, १९९०) | (मूल रचना: १९८८; एक झील थी बर्फ की - आधार प्रकाशन, १९९०) |
01:28, 4 अक्टूबर 2007 का अवतरण
सात कविताएँ
१
वह जो बार बार पास आता है
क्या उसे पता है वह क्या चाहता है
वह जाता है
लौटकर नाराज़गी के मुहावरों
के किले गढ़
भेजता है शब्दों की पतंगें
मैं समझता हूँ मैं क्या चाहता हूँ
क्या सचमुच मुझे पता है मैं क्या चाहता हूँ
जैसे चाँद पर मुझे कविता लिखनी है
वैसे ही लिखनी है उस पर भी
मज़दूरों के साथ बिताई एक शाम की
चाँदनी में लौटते हुए
एक चाँद उसके लिए देखता हूँ
चाँदनी हम दोनों को छूती
पार करती असंख्य वन-पर्वत
बीहड़ों से बीहड़ इंसानी दरारों
को पार करती चाँदनी
उस पर कविता लिखते हुए
लिखता हूँ तांडव गीत
तोड़ दो, तोड़ दो, सभी सीमाओं को तोड़ दो।
२
कराची में भी कोई चाँद देखता है
युद्ध सरदार परेशान
ऐेसे दिनों में हम चाँद देख रहे हैं
चाँद के बारे में सबसे अच्छी खबर कि
वहाँ कोई हिंद पाक नहीं है
चाँद ने उन्हें खारिज शब्दों की तरह कूड़ेदानी में फेंक दिया है।
आलोक धन्वा, तुम्हारे जुलूस में मैं हूँ, वह है
चाँद की पकाई खीर खाने हम साथ बैठेंगे
बगदाद, कराची, अमृतसर, श्रीनगर जा जा
अनधोए अंगूठों पर चिपके दाने चाटेंगे।
३
चाँद से अनगिनत इच्छाएँ साझी करता हूँ
चाँद ने मेरी बातें बहुत पहले सुन ली हैं
फिर भी कहता हूँ
और चाँद का हाथ
अपने बालों में अनुभव करता हूँ
चाँद ने कागज कलम बढ़ाते हुए
कविताएँ लिखने को कहा है
सायरेन बज रहा है।
४
मेरे लिए भी कोई सोचता है
अँधेरे में तारों की रोशनी में उसे देखता हूँ
दूर खिड़की पर उदास खड़ी है। दबी हुई मुस्कान
जो दिन भर उसे दिगंत तक फैलाए हुए थी
उस वक्त बहुत दब गई है।
अनगिनत सीमाओं पार खिड़की पर वह उदास है।
उसके खयालों में मेरी कविताएँ हैं। सीमाएँ पार
करते हुए गोलीबारी में कविताएँ हैं लहूलुहान।
वह मेरी हर कविता की शुरुआत।
वह काश्मीर के बच्चों की उदासी।
वह मेरा बसंत, मेरा नवगीत,
वह मुर्झाए पौधों के फिर से खिलने सी।
५
वह जो मेरा है
मेरे पास होकर भी मुझ से बहुत दूर है।
पास आने के मेरे उसके खयाल
आश्चर्य का छायाचित्र बन दीवार पर टँगे हैं,
द्विआयामी अस्तित्व में हम अवाक देखते हैं
हमारे बीच की ऊँची दीवार।
ईश्वर अल्लाह तेरे नाम
अनजान लकीर के इस पार उस पार
उँगलियाँ छूती हैं
स्पर्श पौधा बन पुकारता है
स्पर्श ही अल्लाह, स्पर्श ही ईश्वर।
६
मैं कौन हूँ? तुम कौन हो?
मैं एक पिता देखता हूँ पितृहीन प्राण।
ग्रहों को पार कर मैं आया हूँ
एक भरपूर जीवन जीता बयालीस की बालिग उम्र
देख रहा हूँ एक बच्चे को मेरा सीना चाहिए
उसकी निश्छलता की लहरों में मैं काँपता हूँ
मेरे एकाकी क्षणों में उसका प्रवेश सृष्टि का आरंभ है
मेरी दुनिया बनाते हुए वह मुस्कराता है
सुनता हूँ बसंत के पूर्वाभास में पत्तियों की खड़खड़ाहट
दूर दूर से आवाज़ें आती हैं उसके होने के उल्लास में
आश्चर्य मानव संतान
अपनी संपूर्णता के अहसास से बलात् दूर
उँगलियाँ उठाता है, माँगता है भोजन के लिए कुछ पैसे।
७
मुड़ मुड़ उसके लिए दढ़ियल बरगद बनने की प्रतिज्ञा करता हूँ।
सन् २००० में मेरी दाढ़ी खींचने पर धू धू लपटें उसे घेर लेंगीं।
मेरी नियति पहाड़ बनाने के अलावा और कुछ नहीं।
उसकी खुली आँखों को सिरहाने तले सँजोता हूँ।
उड़नखटोले पर बैठते वक्त वह मेरे पास होगा।
युद्ध सरदारों सुनो! मैं उसे बूँद बूँद अपने सीने में सींचूँगा।
उसे बादल बन ढक लूँगा। उसकी आँखों में आँसू बन छल छल छलकूँगा।
उसके होंठों में विस्मय की ध्वनि तरंग बनूँगा।
तुम्हारी लपटों को मैं लगातार प्यार की बारिश बन बुझाऊँगा।
पहाड़ को नंगा करते वक्त तुमने सोचा न था
पहाड़-१
पहाड़ को कठोर मत समझो
पहाड़ को नोचने पर
पहाड़ के अाँसू बह अाते हैं
सड़कें करवट बदल
चलते-चलते रुक जाती हैं
पहाड़ को
दूर से देखते हो तो
पहाड़ ऊँचा दिखता है
करीब आओ
पहाड़ तुम्हें ऊपर खींचेगा
पहाड़ के ज़ख्मी सीने में
रिसते धब्बे देख
चीखो मत
पहाड़ को नंगा करते वक्त
तुमने सोचा न था
पहाड़ के जिस्म में भी
छिपे रहस्य हैं।
पहाड़-२
इसलिए अब
अकेली चट्टान को
पहाड़ मत समझो
पहाड़ तो पूरी भीड़ है
उसकी धड़कनें
अलग-अलग गति से
बढ़ती-घटती रहती हैं
अकेले पहाड़ का जमाना
बीत गया
अब हर ओर
पहाड़ ही पहाड़ हैं।
पहाड़-३
पहाड़ों पर रहने वाले लोग
पहाड़ों को पसंद नहीं करते
पहाड़ों के साथ
हँस लेते हैं
रो लेते हैं
सोचते हैं
पहाड़ों पर आधी ज़िंदगी गुज़र गई
बाकी भी गुज़र जाएगी।
(मूल रचना: १९८८; एक झील थी बर्फ की - आधार प्रकाशन, १९९०)