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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
 
<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : वतन का गीत '''रचनाकार:''' [[गोरख पाण्डेय]] </div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : लोहा '''रचनाकार:''' [[एकांत श्रीवास्तव]] </div>
 
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हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो
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जंग लगा लोहा पाँव में चुभता है
नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी हो
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तो मैं टिटनेस का इंजेक्शन लगवाता हूँ
 
+
लोहे से बचने के लिए नहीं
नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों
+
उसके जंग के सँक्रमण से बचने के लिए
मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो
+
मैं तो बचाकर रखना चाहता हूँ
 
+
उस लोहे को जो मेरे ख़ून में है
न हो कोई राजा न हो रंक कोई
+
जीने के लिए इस संसार में
सभी हों बराबर सभी आदमी हों
+
रोज़ लोहा लेना पड़ता है
 
+
एक लोहा रोटी के लिए लेना पड़ता है
न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले
+
दूसरा इज़्ज़त के साथ
हमारे दिलों की न सौदागरी हो
+
उसे खाने के लिए
 
+
एक लोहा पुरखों के बीज को
ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई
+
बचाने के लिए लेना पड़ता है
निगाहों में अपनी नई रोशनी हो
+
दूसरा उसे उगाने के लिए
 
+
मिट्टी में, हवा में, पानी में
न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन
+
पालक में और ख़ून में जो लोहा है
न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी हो
+
यही सारा लोहा काम आता है एक दिन
 
+
फूल जैसी धरती को बचाने में
सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में
+
कि गंगो-जमन जैसी दरियादिली हो
+
 
+
नये फ़ैसले हों नई कोशिशें हों
+
नयी मंज़िलों की कशिश भी नई हो
+
 
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02:09, 17 अगस्त 2012 का अवतरण

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सप्ताह की कविता
शीर्षक : लोहा रचनाकार: एकांत श्रीवास्तव
जंग लगा लोहा पाँव में चुभता है
तो मैं टिटनेस का इंजेक्शन लगवाता हूँ
लोहे से बचने के लिए नहीं
उसके जंग के सँक्रमण से बचने के लिए
मैं तो बचाकर रखना चाहता हूँ
उस लोहे को जो मेरे ख़ून में है
जीने के लिए इस संसार में
रोज़ लोहा लेना पड़ता है
एक लोहा रोटी के लिए लेना पड़ता है
दूसरा इज़्ज़त के साथ
उसे खाने के लिए
एक लोहा पुरखों के बीज को
बचाने के लिए लेना पड़ता है
दूसरा उसे उगाने के लिए
मिट्टी में, हवा में, पानी में
पालक में और ख़ून में जो लोहा है
यही सारा लोहा काम आता है एक दिन
फूल जैसी धरती को बचाने में