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"कभी कभी / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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+ | देती है दमड़ी भर दान | ||
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+ | मैं जो मानता हूँ कि अपने को ख़ूब जानता हूँ | ||
+ | पाता हूँ अपनी ही पहचान | ||
+ | कभी कभी | ||
+ | मैं ने लिखा बहुत तुम्हारे लिए | ||
+ | पर सचाई की तड़प में किया याद | ||
+ | कभी कभी | ||
+ | पागल तो हूँ, सदा रहा तुम्हारे लिए | ||
+ | पाया पर वासना से परे का उन्माद | ||
+ | कभी कभी। | ||
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16:48, 10 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
(1)
दिन जो रोज़ डूबते हैं
बीतते हैं
कभी कभी
घड़े जो रोज़ छलकते, रीतते हैं
भरते हैं
(2)
नियति जो बारती है लाखों घड़ी-घड़ी
देती है दमड़ी भर दान
कभी कभी
मैं जो मानता हूँ कि अपने को ख़ूब जानता हूँ
पाता हूँ अपनी ही पहचान
कभी कभी
मैं ने लिखा बहुत तुम्हारे लिए
पर सचाई की तड़प में किया याद
कभी कभी
पागल तो हूँ, सदा रहा तुम्हारे लिए
पाया पर वासना से परे का उन्माद
कभी कभी।