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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
 
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : लोहा''' रचनाकार : [[एकांत श्रीवास्तव]] </div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक :ताकि सनद रहे''' रचनाकार : [[सदस्य:चंद्र मौलेश्वर‎]] </div>
 
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जंग लगा लोहा पाँव में चुभता है
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कविता कोश के महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता और हिन्दी के विकास हेतु सदा प्रयत्नशील रहने वाले श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद का 12 सितम्बर 2012 को देहांत हो गया। कविता कोश की ओर से अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली।
तो मैं टिटनेस का इंजेक्शन लगवाता हूँ
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लोहे से बचने के लिए नहीं
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आपने 18 अप्रैल 2009 को कविता कोश से जुडकर 600 से भी अधिक रचनाओं को इस कोश में जोडा आपने जो पहली रचना इस कोश में जोडी वह ऋषभ देव शर्मा जी की रचना गोलमहल थी और संग्रह था ताकि सनद रहे..... ।
उसके जंग के सँक्रमण से बचने के लिए
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मैं तो बचाकर रखना चाहता हूँ
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यह संयोग है कि आने 21 जुलाई 2011 को अंतिम बार कविताकोश पर जिस रचना को जोडा वह भी ऋषभदेव शर्मा की ही रचना थी तेवरी काव्यान्दोलन।
उस लोहे को जो मेरे ख़ून में है
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जीने के लिए इस संसार में
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कविताकोश से योगदानकर्ता के रूप में जुडे रहने के दौरान आपने आरज़ू लखनवी, ‎ सफ़ी लखनवी, सीमाब अकबराबादी, ‎ जिगर मुरादाबादी, ‎आसी ग़ाज़ीपुरी, ‎ अमजद हैदराबादी, ‎कविता वाचक्नवी, यगाना चंगेज़ी, ‎ लेकर फ़ानी बदायूनी, तक शायरियों को जोडा ।
रोज़ लोहा लेना पड़ता है
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एक लोहा रोटी के लिए लेना पड़ता है
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कविताकोश और उसके पढने वाले श्रीश्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के योगदान को हमेशा याद रखेंगे ।
दूसरा इज़्ज़त के साथ
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उसे खाने के लिए
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ईश्वर ने आपके लिये स्वर्ग में स्थान सुनिश्चित किया हो इसी कामना के साथ सभी योगदानकर्ताओं की ओर से अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि ।
एक लोहा पुरखों के बीज को
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बचाने के लिए लेना पड़ता है
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दूसरा उसे उगाने के लिए
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मिट्टी में, हवा में, पानी में
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पालक में और ख़ून में जो लोहा है
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यही सारा लोहा काम आता है एक दिन
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फूल जैसी धरती को बचाने में  
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16:20, 21 सितम्बर 2012 का अवतरण

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सप्ताह की कविता
शीर्षक :ताकि सनद रहे रचनाकार : सदस्य:चंद्र मौलेश्वर‎
कविता कोश के महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता और हिन्दी के विकास हेतु सदा प्रयत्नशील रहने वाले श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद का 12 सितम्बर 2012 को देहांत हो गया। कविता कोश की ओर से अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली।

आपने 18 अप्रैल 2009 को कविता कोश से जुडकर 600 से भी अधिक रचनाओं को इस कोश में जोडा आपने जो पहली रचना इस कोश में जोडी वह ऋषभ देव शर्मा जी की रचना गोलमहल थी और संग्रह था ताकि सनद रहे..... ।

यह संयोग है कि आने 21 जुलाई 2011 को अंतिम बार कविताकोश पर जिस रचना को जोडा वह भी ऋषभदेव शर्मा की ही रचना थी तेवरी काव्यान्दोलन।

कविताकोश से योगदानकर्ता के रूप में जुडे रहने के दौरान आपने आरज़ू लखनवी, ‎ सफ़ी लखनवी, सीमाब अकबराबादी, ‎ जिगर मुरादाबादी, ‎आसी ग़ाज़ीपुरी, ‎ अमजद हैदराबादी, ‎कविता वाचक्नवी, यगाना चंगेज़ी, ‎ लेकर फ़ानी बदायूनी, तक शायरियों को जोडा ।

कविताकोश और उसके पढने वाले श्रीश्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के योगदान को हमेशा याद रखेंगे ।

ईश्वर ने आपके लिये स्वर्ग में स्थान सुनिश्चित किया हो इसी कामना के साथ सभी योगदानकर्ताओं की ओर से अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि ।