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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">एक तू ही नहीं है</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!</div>
<div style="font-size:15px;"> कवि:[[साहिर लुधियानवी| साहिर लुधियानवी]] </div>
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<div style="font-size:15px;"> कवि:[[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"| सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]] </div>
 
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हर चीज़ ज़माने की जहाँ पर थी वहीं है,
+
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
एक तू ही नहीं है
+
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!
  
नज़रें भी वही और नज़ारे भी वही हैं
+
यह घाट वही जिस पर हँसकर,
ख़ामोश फ़ज़ाओं के इशारे भी वही हैं
+
वह कभी नहाती थी धँसकर,
कहने को तो सब कुछ है, मगर कुछ भी नहीं है
+
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
 +
कँपते थे दोनों पाँव बंधु!
  
हर अश्क में खोई हुई ख़ुशियों की झलक है
+
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
हर साँस में बीती हुई घड़ियों की कसक है
+
फिर भी अपने में रहती थी,
तू चाहे कहीं भी हो, तेरा दर्द यहीं है
+
सबकी सुनती थी, सहती थी,
 
+
देती थी सबके दाँव, बंधु!
हसरत नहीं, अरमान नहीं, आस नहीं है
+
यादों के सिवा कुछ भी मेरे पास नहीं है
+
यादें भी रहें या न रहें किसको यक़ीं है
+
  
 
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01:51, 28 अक्टूबर 2012 का अवतरण

Lotus-48x48.png
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!

यह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव बंधु!

वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी सुनती थी, सहती थी,
देती थी सबके दाँव, बंधु!