"जीवन-राग / सत्यनारायण सोनी" के अवतरणों में अंतर
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('आपने भोपे को रावणहत्थे के सुर में सुर मिलाकर गाते, ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=सत्यनारायण सोनी | ||
+ | |संग्रह=कवि होने की ज़िद में / सत्यनारायण सोनी | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <Poem> | ||
आपने | आपने | ||
भोपे को | भोपे को |
22:29, 26 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
आपने
भोपे को
रावणहत्थे के
सुर में सुर मिलाकर गाते,
जीवन और संगीत को
एकाकार होते
देखा है?
पढ़ा है
कभी वह क्षण
जो गाते वक्त
उसके रोम-रोम में
तैर रहा होता है!
बिखरे बालों,
मैले-कुचैले,
फटे-पुराने वस्त्रों
और पिंडलियों पर
रींगों वाली
वह लड़की अबोध-सी
जो पास खड़ी भोपे के
लिए कोलका
सिलवर वाला
अपने काले-कलूटे-से हाथों में,
सुर से सुर को
साध रही है,
पर नजरें आँगन में
अपने पारिश्रमिक-
रोटी के टुकड़े को
भाल रही हैं।
उसकी काया में प्रवेश कर
उसका जीवन
सपने में ही सही
भोगा तो होगा
कभी आपने!
और कभी
एवड़ के बीच
रात-रात भर
खुर्राटे भरते
पर पल-पल की
खबर रखते
एवाळिए को भी तो
देखा होगा आपने।
महसूसी होगी
भेड़ों के तन से,
मल से निकली
वह भीनी-भीनी महक
नथुनों में भर उसको
पाया तो होगा कभी
स्वर्गिक आनन्द आपने!
वरना
कविता भी क्योंकर पढ़ते!
2005