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− | + | तुम्हारी मुस्कराहटो से भरी नज़रों ने जो चाँदनी की चादर बिछाई थी | |
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12:31, 8 नवम्बर 2012 के समय का अवतरण
वो सब बातें अनकही रह गई हैं
जो मैं तुमसे और तुम मुझसे कहना चाहती थीं
हम भूल गए थे
जब आँखे बात करती हैं
शब्द सहम कर खड़े रहते हैं
रात की छलनी से छन के निकले थे जो पल
वे सब मौन ही थे
उन भटकी हुई दिशाओं में
तुम्हारी मुस्कराहटो से भरी नज़रों ने जो चाँदनी की चादर बिछाई थी
अंजुरी भर-भर पी लिए थे नेत्रों ने लग्न-मन्त्र
याद है मुझे
अब भी मेरी सुबह जब ख़ुशगवार होती है
मै जानता हूँ ये बेवज़ह नहीं
तुम अपनी जुदा राह पर
मुझे याद कर रही हो