भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बंटवारा कर दो / महेश अनघ" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
धन सरकारी | धन सरकारी | ||
मेरे हिस्से परमेसुर । | मेरे हिस्से परमेसुर । | ||
− | |||
शहर धुएँ के नाम चढ़ाओ | शहर धुएँ के नाम चढ़ाओ | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 18: | ||
खीर-खांड ख़ैराती खाते | खीर-खांड ख़ैराती खाते | ||
हमको गौमाता के खुर | हमको गौमाता के खुर | ||
− | |||
सब छुट्टी के दिन साहब के | सब छुट्टी के दिन साहब के | ||
पंक्ति 27: | पंक्ति 25: | ||
अजर-अमर श्रीमान उठा लें | अजर-अमर श्रीमान उठा लें | ||
हमको छोड़े क्षण भंगुर | हमको छोड़े क्षण भंगुर | ||
− | |||
पँच बुला कर करो फ़ैसला | पँच बुला कर करो फ़ैसला |
23:49, 27 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण
बँटवारा कर दो ठाकुर ।
तन मालिक का
धन सरकारी
मेरे हिस्से परमेसुर ।
शहर धुएँ के नाम चढ़ाओ
सड़कें दे दो झंडों को
पर्वत कूटनीति को अर्पित
तीरथ दे दो पंडों को ।
खीर-खांड ख़ैराती खाते
हमको गौमाता के खुर
सब छुट्टी के दिन साहब के
सब उपास चपरासी के
उसमें पदक कुंअर जू के हैं
ख़ून पसीने घासी के
अजर-अमर श्रीमान उठा लें
हमको छोड़े क्षण भंगुर
पँच बुला कर करो फ़ैसला
चौड़े-चौक उजाले में
त्याग-तपस्या इस पाले में
गजभीम उस पाले में
दीदे फाड़-फाड़ सब देखें
हम देखेंगे टुकुर-टुकुर