"पूछती हैं बेटियाँ / किरण अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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− | + | माँ ! यह व्रत किसके लिए कर रही हो तुम ? | |
पूछती हैं बेटियाँ | पूछती हैं बेटियाँ | ||
− | + | तेरे बाबूजी के लिए कर रही हूँ | |
बोलती हूँ मैं | बोलती हूँ मैं | ||
और देने लगती हूँ चन्द्रमा को अर्ध्य | और देने लगती हूँ चन्द्रमा को अर्ध्य | ||
− | + | माँ ! यह व्रत किसके लिए कर रही हो तुम ? | |
पूछती हैं बेटियाँ | पूछती हैं बेटियाँ | ||
− | + | तेरे भैया के लिए कर रही हूँ | |
बोलती हूँ मैं | बोलती हूँ मैं | ||
और देने लगती हूँ तारों को अर्ध्य | और देने लगती हूँ तारों को अर्ध्य | ||
− | + | माँ ! यह व्रत किसके लिए कर रही हो तुम ? | |
पूछती हैं बेटियाँ | पूछती हैं बेटियाँ | ||
− | + | तेरे बाबूजी और तेरे भैया के लिए कर रही हूँ | |
− | अपने परिवार की खुशहाली के लिए कर रही हूँ | + | अपने परिवार की खुशहाली के लिए कर रही हूँ |
बोलती हूँ मैं | बोलती हूँ मैं | ||
और काढ़ने लगती हूँ सकट देवता चकले पर गंगोटी से | और काढ़ने लगती हूँ सकट देवता चकले पर गंगोटी से | ||
− | + | माँ ! बेटियों के लिए व्रत किस दिन करोगी तुम ? | |
पूछती हैं बेटियाँ | पूछती हैं बेटियाँ | ||
− | + | हमारे शास्त्रों में ऐसे किसी व्रत का विधान नहीं है | |
बोलती हूँ मैं | बोलती हूँ मैं | ||
रोली और तिल के छींटे सकट देवता पर लगाते हुए | रोली और तिल के छींटे सकट देवता पर लगाते हुए | ||
− | + | माँ ! तो क्या हम तुम्हारे परिवार के बाहर हैं ? | |
पूछती हैं बेटियाँ | पूछती हैं बेटियाँ | ||
− | + | यह कैसी बातें करती हो तुम सब ! | |
मैं सिर उठाकर देखती हूँ बेटियों को भरपूर नजर | मैं सिर उठाकर देखती हूँ बेटियों को भरपूर नजर | ||
− | + | माँ ! हम धर्म-शास्त्रों को बदल डालेंगे | |
हम क्यों मानें धर्म को या शास्त्र को | हम क्यों मानें धर्म को या शास्त्र को | ||
− | जो हमें नहीं मानता... | + | जो हमें नहीं मानता... |
− | + | बहुत जबान चलने लगी है तुम लोगों की | |
− | खाली खा-खाकर मोटी हो रही हो | + | खाली खा-खाकर मोटी हो रही हो |
थप्पड़ मारने के लिए उठा मेरा हाथ | थप्पड़ मारने के लिए उठा मेरा हाथ | ||
बीच में ही रुक गया है | बीच में ही रुक गया है | ||
लगता है बेटियों की जगह मैं खड़ी हूँ | लगता है बेटियों की जगह मैं खड़ी हूँ | ||
और पूछ रही हूँ अपनी माँ से | और पूछ रही हूँ अपनी माँ से | ||
− | + | माँ ! मेरे लिए व्रत किस दिन रखोगी तुम ? | |
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01:39, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
माँ ! यह व्रत किसके लिए कर रही हो तुम ?
पूछती हैं बेटियाँ
तेरे बाबूजी के लिए कर रही हूँ
बोलती हूँ मैं
और देने लगती हूँ चन्द्रमा को अर्ध्य
माँ ! यह व्रत किसके लिए कर रही हो तुम ?
पूछती हैं बेटियाँ
तेरे भैया के लिए कर रही हूँ
बोलती हूँ मैं
और देने लगती हूँ तारों को अर्ध्य
माँ ! यह व्रत किसके लिए कर रही हो तुम ?
पूछती हैं बेटियाँ
तेरे बाबूजी और तेरे भैया के लिए कर रही हूँ
अपने परिवार की खुशहाली के लिए कर रही हूँ
बोलती हूँ मैं
और काढ़ने लगती हूँ सकट देवता चकले पर गंगोटी से
माँ ! बेटियों के लिए व्रत किस दिन करोगी तुम ?
पूछती हैं बेटियाँ
हमारे शास्त्रों में ऐसे किसी व्रत का विधान नहीं है
बोलती हूँ मैं
रोली और तिल के छींटे सकट देवता पर लगाते हुए
माँ ! तो क्या हम तुम्हारे परिवार के बाहर हैं ?
पूछती हैं बेटियाँ
यह कैसी बातें करती हो तुम सब !
मैं सिर उठाकर देखती हूँ बेटियों को भरपूर नजर
माँ ! हम धर्म-शास्त्रों को बदल डालेंगे
हम क्यों मानें धर्म को या शास्त्र को
जो हमें नहीं मानता...
बहुत जबान चलने लगी है तुम लोगों की
खाली खा-खाकर मोटी हो रही हो
थप्पड़ मारने के लिए उठा मेरा हाथ
बीच में ही रुक गया है
लगता है बेटियों की जगह मैं खड़ी हूँ
और पूछ रही हूँ अपनी माँ से
माँ ! मेरे लिए व्रत किस दिन रखोगी तुम ?