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"रिपिया रूंखड़ा पे नीं लागै / कुंजन आचार्य" के अवतरणों में अंतर

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('<poem>धीरै-धीरै बधता-बधता म्हां करोडां नैं पार करग्या।...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
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बधता-बधता
 
बधता-बधता
 
म्हां करोडां नैं पार करग्या।
 
म्हां करोडां नैं पार करग्या।

05:34, 16 मई 2013 का अवतरण

धीरै-धीरै
बधता-बधता
म्हां करोडां नैं पार करग्या।
आबादी बधती रैयी
संसाधन घटता गया
अर म्हां आंख मींच नैं
बैठा रैया किणी आस में
सरकार रो मूंडो ताकता रैया
कै सरकार म्हांरी उद्धारक है।
 
सरकार कैवै कै
रिपिया रूंखड़ा पे नीं लागै।
नौकर्यां ई रूंखड़ां पे नीं लाग रैयी है।
नवी पीढी भण लिख’र
नौकरी पाछै थाक रैयी है।
रोजगार रा कम औसर
मन में रोळो घालै।
बधती जनसंख्या नैं
किण ढाळै संभाळै।
स्वरुजगार, आपणो हुनर
चोखो अर ठावो है
भणावो-लिखावो पण
टाबरियां नैं आ बात ई बतावो।