"हवाई थैला / मदन कश्यप" के अवतरणों में अंतर
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जिसे हम कहते हैं हवाई थैला | जिसे हम कहते हैं हवाई थैला | ||
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यह केवल अनुवाद नहीं है हमारी भाषा में | यह केवल अनुवाद नहीं है हमारी भाषा में | ||
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इसके हवाई होने का अपना अर्थ है | इसके हवाई होने का अपना अर्थ है | ||
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इस थैले में सिमट आता है | इस थैले में सिमट आता है | ||
− | + | हमारा छोटा-सा संसार | |
− | हमारा छोटा सा संसार | + | ज़रूरी कपड़े |
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अगल बगल के खलों में किताबें | अगल बगल के खलों में किताबें | ||
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ब्रश और रेजर | ब्रश और रेजर | ||
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नहाने का साबुन | नहाने का साबुन | ||
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जूते पोंछ कर फेंक देने के लिए | जूते पोंछ कर फेंक देने के लिए | ||
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पुरानी फटी गंजियों के कुछ टुकड़े | पुरानी फटी गंजियों के कुछ टुकड़े | ||
− | + | इन्हीं गडमड चीज़ों के बीच छुपी होती है | |
− | + | बिटिया की हँसी | |
− | इन्हीं गडमड | + | |
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पत्नी की हिदायतें | पत्नी की हिदायतें | ||
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और फ्रेम से बाहर निकल कर | और फ्रेम से बाहर निकल कर | ||
− | + | बोलने-बतियाने वाली फ्रेंच पेण्टिंग की एक जोड़ी आँखें | |
− | बोलने बतियाने वाली फ्रेंच पेण्टिंग की एक जोड़ी | + | बेहद कठिन समय और दुर्गम यात्राओं में भी |
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− | बेहद कठिन समय और दुर्गम | + | |
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मुझे एकटक निहारती होती हैं | मुझे एकटक निहारती होती हैं | ||
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इस हवाई थैले को और गहरा और रहस्यमय बनाती हुई | इस हवाई थैले को और गहरा और रहस्यमय बनाती हुई | ||
+ | जहाँ हमेशा ही चीज़ों से ज़्यादा होती है यादें | ||
− | + | कितनी-कितनी यात्राएँ | |
− | + | कैसी-कैसी यात्राएँ | |
− | + | धरती से कहीं अधिक उम्मीदों के भूगोल में की गयीं यात्राएँ | |
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और हर बार जिस तरह हमारा एक हिस्सा | और हर बार जिस तरह हमारा एक हिस्सा | ||
+ | छूट जाता है सफ़र पर जाने से | ||
+ | उसी तरह उन तमाम चीज़ों का कुछ-कुछ थैले में होता है | ||
+ | जो हमारे साथ यात्रा में नहीं होतीं | ||
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− | + | देर तक इस थैले में कुछ ढूँढ़ते रहते हैं हम | |
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यह जानते हुए कि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है | यह जानते हुए कि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है | ||
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और यह हवाई थैला भी कुछ न कुछ तो ऐसा रखता ही है | और यह हवाई थैला भी कुछ न कुछ तो ऐसा रखता ही है | ||
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कि उम्मीद न टूटे | कि उम्मीद न टूटे | ||
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यह होता है | यह होता है | ||
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तो बेहद अकेलेपन में भी | तो बेहद अकेलेपन में भी | ||
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अकेला नहीं होने देता | अकेला नहीं होने देता | ||
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यह जितना पुराना है | यह जितना पुराना है | ||
− | + | उससे कहीं ज़्यादा पहले का है हमारा रिश्ता | |
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वह तो तभी जुड़ गया था | वह तो तभी जुड़ गया था | ||
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जब हमारे कंधे में पैदा हुई थी | जब हमारे कंधे में पैदा हुई थी | ||
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थैला लटकाने की आकांक्षा | थैला लटकाने की आकांक्षा | ||
+ | हम कपड़े के पुराने झोले में देखा करते थे इसका अक्स | ||
− | + | आते-जाते बौंखते-बउआते | |
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− | आते जाते बौंखते बउआते | + | |
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एक दिन ऐसा आया जब मन को कड़ा किया | एक दिन ऐसा आया जब मन को कड़ा किया | ||
− | + | और अपने क़स्बाई घर का सारा दुःख | |
− | और अपने | + | इस थैले में डाल कर चले आए दिल्ली |
− | + | यहाँ रहते हुए कुछ दिनों बाद पता चला | |
− | इस थैले में डाल कर चले | + | जितना दुःख हम थैले में ले आए |
− | + | उतना ही रह गया है वहाँ | |
− | + | इस तरह देखते-देखते दूना हो गया दुःख! | |
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− | जितना दुःख हम थैले में ले | + | |
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− | उतना ही रह गया है | + | |
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− | इस तरह देखते देखते दूना हो गया दुःख! | + |
20:34, 7 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
एक बड़ा सा एअर-बैग है
जिसे हम कहते हैं हवाई थैला
यह केवल अनुवाद नहीं है हमारी भाषा में
इसके हवाई होने का अपना अर्थ है
इस थैले में सिमट आता है
हमारा छोटा-सा संसार
ज़रूरी कपड़े
अगल बगल के खलों में किताबें
ब्रश और रेजर
नहाने का साबुन
जूते पोंछ कर फेंक देने के लिए
पुरानी फटी गंजियों के कुछ टुकड़े
इन्हीं गडमड चीज़ों के बीच छुपी होती है
बिटिया की हँसी
पत्नी की हिदायतें
और फ्रेम से बाहर निकल कर
बोलने-बतियाने वाली फ्रेंच पेण्टिंग की एक जोड़ी आँखें
बेहद कठिन समय और दुर्गम यात्राओं में भी
मुझे एकटक निहारती होती हैं
इस हवाई थैले को और गहरा और रहस्यमय बनाती हुई
जहाँ हमेशा ही चीज़ों से ज़्यादा होती है यादें
कितनी-कितनी यात्राएँ
कैसी-कैसी यात्राएँ
धरती से कहीं अधिक उम्मीदों के भूगोल में की गयीं यात्राएँ
और हर बार जिस तरह हमारा एक हिस्सा
छूट जाता है सफ़र पर जाने से
उसी तरह उन तमाम चीज़ों का कुछ-कुछ थैले में होता है
जो हमारे साथ यात्रा में नहीं होतीं
ऐसा विश्वास कि कभी-कभी भूख प्यास लगने पर
देर तक इस थैले में कुछ ढूँढ़ते रहते हैं हम
यह जानते हुए कि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है
हर बार अपने ज्ञान से ज़्यादा हम इस थैले पर यक़ीन करते हैं
और यह हवाई थैला भी कुछ न कुछ तो ऐसा रखता ही है
कि उम्मीद न टूटे
कई बार स्मृतियाँ ही कुछ खिला-पिला देती हैं
यह होता है
तो बेहद अकेलेपन में भी
अकेला नहीं होने देता
यह जितना पुराना है
उससे कहीं ज़्यादा पहले का है हमारा रिश्ता
वह तो तभी जुड़ गया था
जब हमारे कंधे में पैदा हुई थी
थैला लटकाने की आकांक्षा
हम कपड़े के पुराने झोले में देखा करते थे इसका अक्स
आते-जाते बौंखते-बउआते
एक दिन ऐसा आया जब मन को कड़ा किया
और अपने क़स्बाई घर का सारा दुःख
इस थैले में डाल कर चले आए दिल्ली
यहाँ रहते हुए कुछ दिनों बाद पता चला
जितना दुःख हम थैले में ले आए
उतना ही रह गया है वहाँ
इस तरह देखते-देखते दूना हो गया दुःख!