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"यह संध्या फूली / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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मुरझाया वह कंज बना जो मोती का दोना,<br>
 
मुरझाया वह कंज बना जो मोती का दोना,<br>
पाया जिसने प्रात उसी को है अब कुछ खोना; <br><br>
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पाया जिसने प्रात उसी को है अब कुछ खोना; <br><br>
  
 
आज सुनहली रेणु मली सस्मित गोधूली ने; रजनीगंधा आँज रही है नयनों में सोना !<br>
 
आज सुनहली रेणु मली सस्मित गोधूली ने; रजनीगंधा आँज रही है नयनों में सोना !<br>

03:04, 10 नवम्बर 2007 का अवतरण

यह संध्या फूली सजीली !
आज बुलाती हैं विहगों को नीड़ें बिन बोले;
रजनी ने नीलम-मन्दिर के वातायन खोले;

एक सुनहली उर्म्मि क्षितिज से टकराई बिखरी,
तम ने बढ़कर बीन लिए, वे लघु कण बिन तोले !

अनिल ने मधु-मदिरा पी ली !

मुरझाया वह कंज बना जो मोती का दोना,
पाया जिसने प्रात उसी को है अब कुछ खोना;

आज सुनहली रेणु मली सस्मित गोधूली ने; रजनीगंधा आँज रही है नयनों में सोना !