भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कुदरत रै आगै / निशान्त" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
{{KKCatRajasthaniRachana}}
+
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
<poem>  
 
<poem>  

13:28, 21 अक्टूबर 2013 का अवतरण

 
पाड़ोसी बगा देवै
गळी में थोड़ो-घणो पाणी
तो आपां
मरण नै त्यार हो जावां

पण मेह रै पाणी नै
जूतियां खोल’र
लांघ ज्यावां ।