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"चट्टान पर चीड़ / लीलाधर जगूड़ी" के अवतरणों में अंतर
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पानी पीटता रहा, हवा तराशती रही चट्टान को | पानी पीटता रहा, हवा तराशती रही चट्टान को | ||
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दरारों के भीतर गूँजती हवा कुछ धूल छोड़ आती रही हर बार | दरारों के भीतर गूँजती हवा कुछ धूल छोड़ आती रही हर बार | ||
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कुछ धूप कुछ नमी कुछ घास बन कर उग आती रही धूल | कुछ धूप कुछ नमी कुछ घास बन कर उग आती रही धूल | ||
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धूल में उड़ते हैं पृथ्वी के बीज | धूल में उड़ते हैं पृथ्वी के बीज | ||
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छेद में पड़े बीज ने भी सपना देखा | छेद में पड़े बीज ने भी सपना देखा | ||
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मातृभूमि में एक दरार ही उसके काम आई | मातृभूमि में एक दरार ही उसके काम आई | ||
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चट्टान को माँ के स्तन की तरह चुसते हुए बाहर की पृथ्वी को झाँका | चट्टान को माँ के स्तन की तरह चुसते हुए बाहर की पृथ्वी को झाँका | ||
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हठी और जिद्दी वह आखिर चीड़ का पेड़ निकला | हठी और जिद्दी वह आखिर चीड़ का पेड़ निकला | ||
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जो अकेला ही चट्टान पर जंगल की तरह छा गया | जो अकेला ही चट्टान पर जंगल की तरह छा गया | ||
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उस चीड़ और चट्टान को हिलोरने | उस चीड़ और चट्टान को हिलोरने | ||
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चला आ रही है नटों की तरह नाचती हवा | चला आ रही है नटों की तरह नाचती हवा | ||
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कारीगरों की तरह पसीना बहाती धूप | कारीगरों की तरह पसीना बहाती धूप | ||
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चट्टान और पेड़ को भिगोने | चट्टान और पेड़ को भिगोने | ||
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आँधी में दौड़ती आ रही है बारिश । | आँधी में दौड़ती आ रही है बारिश । | ||
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16:49, 5 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
पानी पीटता रहा, हवा तराशती रही चट्टान को
दरारों के भीतर गूँजती हवा कुछ धूल छोड़ आती रही हर बार
कुछ धूप कुछ नमी कुछ घास बन कर उग आती रही धूल
धूल में उड़ते हैं पृथ्वी के बीज
छेद में पड़े बीज ने भी सपना देखा
मातृभूमि में एक दरार ही उसके काम आई
चट्टान को माँ के स्तन की तरह चुसते हुए बाहर की पृथ्वी को झाँका
हठी और जिद्दी वह आखिर चीड़ का पेड़ निकला
जो अकेला ही चट्टान पर जंगल की तरह छा गया
उस चीड़ और चट्टान को हिलोरने
चला आ रही है नटों की तरह नाचती हवा
कारीगरों की तरह पसीना बहाती धूप
चट्टान और पेड़ को भिगोने
आँधी में दौड़ती आ रही है बारिश ।