भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वार्ता:उत्‍तमराव क्षीरसागर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(उफनती नदी के ख्‍़वाब में)
(उफनती नदी के ख़्वाब में)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|उफनती नदी के ख़्वाब में
 
 
|रचनाकार=उत्‍तमराव क्षीरसागर
 
|रचनाकार=उत्‍तमराव क्षीरसागर
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}{{KKCatKavita}}
 
}}{{KKCatKavita}}
 +
<poem>उफनती नदी के ख़्वाब में
 +
आती हैं
 +
कभी, तटासीन आबाद बस्तिं‍याँ
 +
तो कभी
 +
तीर्थों के गगनचुंबी कलस और
 +
तरूवरों की लम्बीं क़तारें
 +
लेकि‍न
 +
जब-जब भी उमड़ पड़ा है उफान
 +
तैरकर बचती नि‍कल आई हैं बस्तिि‍याँ।
 +
वहाँ के बासिंदों की फ़ि‍तरत में
 +
शामि‍ल होता रहा है गहरे पानी का कटाक्ष
 +
वे पार करते रहे हैं कई-कई सैलाब
 +
अपने हौसलों के आर-पार
 +
 +
जब-जब भी झाँकती है नदी
 +
अपनी हद से बाहर
 +
नि‍कलकर दूर जा बसते रहे हैं देवता
 +
और लौटते रहे हैं तीर्थयात्रि‍यों के संग-संग
 +
वापस अपने धाम तक
 +
भक्तोंप की प्रार्थना सुनने के लि‍ए।
 +
बाँचते रहे हैं शंख और घड़ि‍याल
 +
दीन-दुखि‍यों की अर्जि‍याँ
 +
 +
जब-जब भी कगारों को
 +
टटोलती है जलजिह्वा
 +
नि‍हत्थी समर्पि‍त होती रही हैं जड़ें
 +
जंगल के जंगल बहते गए
 +
फि‍र भी बीज उगाते रहे हैं
 +
क़तारों पे क़तारें फि‍र से
 +
दो क़दम पीछे ही सही
 +
फि‍र से खड़ी होती रही हैं
 +
तरूवरों की संतानें
 +
</poem>

21:00, 30 जनवरी 2014 का अवतरण

उफनती नदी के ख़्वाब में
आती हैं
कभी, तटासीन आबाद बस्तिं‍याँ
तो कभी
तीर्थों के गगनचुंबी कलस और
तरूवरों की लम्बीं क़तारें
लेकि‍न
जब-जब भी उमड़ पड़ा है उफान
तैरकर बचती नि‍कल आई हैं बस्तिि‍याँ।
वहाँ के बासिंदों की फ़ि‍तरत में
शामि‍ल होता रहा है गहरे पानी का कटाक्ष
वे पार करते रहे हैं कई-कई सैलाब
अपने हौसलों के आर-पार

जब-जब भी झाँकती है नदी
अपनी हद से बाहर
नि‍कलकर दूर जा बसते रहे हैं देवता
और लौटते रहे हैं तीर्थयात्रि‍यों के संग-संग
वापस अपने धाम तक
भक्तोंप की प्रार्थना सुनने के लि‍ए।
बाँचते रहे हैं शंख और घड़ि‍याल
दीन-दुखि‍यों की अर्जि‍याँ

जब-जब भी कगारों को
टटोलती है जलजिह्वा
नि‍हत्थी समर्पि‍त होती रही हैं जड़ें
जंगल के जंगल बहते गए
फि‍र भी बीज उगाते रहे हैं
क़तारों पे क़तारें फि‍र से
दो क़दम पीछे ही सही
फि‍र से खड़ी होती रही हैं
तरूवरों की संतानें