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"वार्ता:उत्तमराव क्षीरसागर" के अवतरणों में अंतर
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− | <poem>उफनती नदी के ख़्वाब में
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− | आती हैं
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− | कभी, तटासीन आबाद बस्तिंयाँ
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− | तो कभी
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− | तीर्थों के गगनचुंबी कलस और
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− | तरूवरों की लम्बीं क़तारें
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− | लेकिन
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− | जब-जब भी उमड़ पड़ा है उफान
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− | तैरकर बचती निकल आई हैं बस्तिियाँ।
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− | वहाँ के बासिंदों की फ़ितरत में
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− | शामिल होता रहा है गहरे पानी का कटाक्ष
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− | वे पार करते रहे हैं कई-कई सैलाब
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− | अपने हौसलों के आर-पार
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− | जब-जब भी झाँकती है नदी
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− | अपनी हद से बाहर
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− | निकलकर दूर जा बसते रहे हैं देवता
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− | और लौटते रहे हैं तीर्थयात्रियों के संग-संग
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− | वापस अपने धाम तक
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− | भक्तोंप की प्रार्थना सुनने के लिए।
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− | बाँचते रहे हैं शंख और घड़ियाल
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− | दीन-दुखियों की अर्जियाँ
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− | जब-जब भी कगारों को
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− | टटोलती है जलजिह्वा
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− | निहत्थी समर्पित होती रही हैं जड़ें
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− | जंगल के जंगल बहते गए
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− | फिर भी बीज उगाते रहे हैं
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− | क़तारों पे क़तारें फिर से
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− | दो क़दम पीछे ही सही
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− | फिर से खड़ी होती रही हैं
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− | तरूवरों की संतानें
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− | </poem>
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22:04, 30 जनवरी 2014 के समय का अवतरण