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आज दिन तो अनेक ऊँचों की।
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रोटियाँ नाम बेंच हैं सिंकती।
 
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क्या कहें बात बेहयाई की।
 
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हैं खुले आम बेटियाँ बिकती।
 
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हैं कहीं बेढंगियाँ ऐसी नहीं।
 
हैं कहीं बेढंगियाँ ऐसी नहीं।
 
 
हैं भला हम से कहाँ पर नीच नर।
 
हैं भला हम से कहाँ पर नीच नर।
 
 
लूटते हैं सेंत मेंत हमें सभी।
 
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छूटते हैं खेत बेटी बेंच कर।
 
छूटते हैं खेत बेटी बेंच कर।
  
किस तरह हम को भला वु+छ सूझता।
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किस तरह हम को भला कुछ सूझता।
 
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क्योंकि हम में आँख की ही है कमी।
 
क्योंकि हम में आँख की ही है कमी।
 
 
काठ के पुतले कहाँ हम से मिले।
 
काठ के पुतले कहाँ हम से मिले।
 
 
बेंचते हैं आँख की पुतली हमीं।
 
बेंचते हैं आँख की पुतली हमीं।
  
 
कर मकर मन के मसोसों के बिना।
 
कर मकर मन के मसोसों के बिना।
 
 
जो कभी दामाद को हैं मूसते।
 
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कुल बड़ाई के लहू से हाथ रँग।
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हैं लहू वे बेटियों का चूसते।
 
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आज कितनी ही हमारी चाह पर।
 
आज कितनी ही हमारी चाह पर।
 
 
बेटियाँ बहनें सभी हैं खो रही।
 
बेटियाँ बहनें सभी हैं खो रही।
 
 
क्या भला देंगे निछावर हम उन्हें।
 
क्या भला देंगे निछावर हम उन्हें।
 
 
आप ही वे हैं निछावर हो रही।
 
आप ही वे हैं निछावर हो रही।
  
बेटियाँ बहनें बिकें धान के लिए।
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बेटियाँ बहनें बिकें धन के लिए।
 
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भाव ऐसा क्यों किसी जी में जगे।
 
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जो लगा दे लात कुल की लाज को।
जो लगा दे लात वु+ल की लाज को।
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लत बुरी ऐसी न दौलत की लगे।
 
लत बुरी ऐसी न दौलत की लगे।
  
 
किस लिए तो पले न बेटी से।
 
किस लिए तो पले न बेटी से।
 
 
जो दवा पाप - भार से तन हो।
 
जो दवा पाप - भार से तन हो।
 
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मान का मान तब रखे कैसे।
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जब कि पामाल माल से मन हो।
 
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19:39, 23 मार्च 2014 के समय का अवतरण

आज दिन तो अनेक ऊँचों की।
रोटियाँ नाम बेंच हैं सिंकती।
क्या कहें बात बेहयाई की।
हैं खुले आम बेटियाँ बिकती।

हैं कहीं बेढंगियाँ ऐसी नहीं।
हैं भला हम से कहाँ पर नीच नर।
लूटते हैं सेंत मेंत हमें सभी।
छूटते हैं खेत बेटी बेंच कर।

किस तरह हम को भला कुछ सूझता।
क्योंकि हम में आँख की ही है कमी।
काठ के पुतले कहाँ हम से मिले।
बेंचते हैं आँख की पुतली हमीं।

कर मकर मन के मसोसों के बिना।
जो कभी दामाद को हैं मूसते।
कुल बड़ाई के लहू से हाथ रँग।
हैं लहू वे बेटियों का चूसते।

आज कितनी ही हमारी चाह पर।
बेटियाँ बहनें सभी हैं खो रही।
क्या भला देंगे निछावर हम उन्हें।
आप ही वे हैं निछावर हो रही।

बेटियाँ बहनें बिकें धन के लिए।
भाव ऐसा क्यों किसी जी में जगे।
जो लगा दे लात कुल की लाज को।
लत बुरी ऐसी न दौलत की लगे।

किस लिए तो पले न बेटी से।
जो दवा पाप - भार से तन हो।
मान का मान तब रखे कैसे।
जब कि पामाल माल से मन हो।