भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शाम का रंग / लालसिंह दिल / प्रितपाल सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लालसिंह दिल |अनुवादक=प्रितपाल सि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
शाम का रंग फिर पुराना है
 
शाम का रंग फिर पुराना है
 
जा रहे हैं बस्तियों की ओर फुटपाथ
 
जा रहे हैं बस्तियों की ओर फुटपाथ
जा रही झील कोर्इ दफ्तर से
+
जा रही झील कोई दफ़्तर से
 
नौकरी से लेकर जवाब
 
नौकरी से लेकर जवाब
पी रही है झील कोर्इ जल की प्यास
+
पी रही है झील कोई जल की प्यास
 
चल पड़ा है शहर कुछ गाँवों की राह
 
चल पड़ा है शहर कुछ गाँवों की राह
फेंक कर कोर्इ जा रहा है सारी कमार्इ
+
फेंक कर कोई जा रहा है सारी कमाई
 
   
 
   
 
पोंछता आ रहा कोई धोती से खून
 
पोंछता आ रहा कोई धोती से खून
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
   
 
   
 
शाम का रंग फिर पुराना है
 
शाम का रंग फिर पुराना है
छोड़ चले हैं एक और गैरों की जमीन
+
छोड़ चले हैं एक और ग़ैरों की ज़मीन
 
छज्जे वाले
 
छज्जे वाले
 
जा रहा है लम्बा वादा
 
जा रहा है लम्बा वादा
 
झिड़कियों का भण्डार लादे
 
झिड़कियों का भण्डार लादे
 
   
 
   
लम्बे सायों के साथ साथ गधों  पर
+
लम्बे सायों के साथ-साथ गधों  पर
 
बैठे हैं शिशु
 
बैठे हैं शिशु
 
   
 
   
 
पिताओं के हाथ में कुत्ते हैं
 
पिताओं के हाथ में कुत्ते हैं
 
माताओं की पीठ पीछे बंधे पतीले हैं
 
माताओं की पीठ पीछे बंधे पतीले हैं
पतीलों में माओं के बच्चे सोये हैं
+
पतीलों में माँओं के बच्चे सोए हैं
 
   
 
   
 
जा रहा है लम्बा वादा
 
जा रहा है लम्बा वादा
कंधों पर उठाए झोंपडी के बांस
+
कन्धों पर उठाए झोंपड़ी के बांस
भूख के मारे यह कौन चीख रहा है?
+
भूख के मारे यह कौन चीख़ रहा है?
ये किस भारत की ज़मीन रोकने जा रहे हैं?
+
ये किस भारत की ज़मीन रोकने जा रहे हैं ?
 
   
 
   
 
नौजवानों को कुत्ते प्यारे हैं
 
नौजवानों को कुत्ते प्यारे हैं
वे कहां पालें
+
वे कहाँ पालें
महलों के चेहरों का प्यार?
+
महलों के चेहरों का प्यार ?
 
   
 
   
 
वे भूखों के शिकार छोड़ चल पड़े हैं
 
वे भूखों के शिकार छोड़ चल पड़े हैं
किन्हीं गैरों की जमीन की ओर
+
किन्हीं ग़ैरों की ज़मीन की ओर
 
   
 
   
 
जा रहा है लम्बा वादा
 
जा रहा है लम्बा वादा
 
इनकों क्या पता है?
 
इनकों क्या पता है?
 
कितने बंधे कीलों के साथ
 
कितने बंधे कीलों के साथ
जलाये जाते हैं रोज लोग
+
जलाए जाते हैं रोज़ लोग
 
जो छोड़ भी नहीं सकते
 
जो छोड़ भी नहीं सकते
बस्तियों को किसी रोज
+
बस्तियों को किसी रोज़
जा रहा है साथ साथ
+
जा रहा है साथ-साथ
 
बस्ती के पेड़ों का साया
 
बस्ती के पेड़ों का साया
 
पकड़ रहा है गृहासक्त पशुओं के पैर
 
पकड़ रहा है गृहासक्त पशुओं के पैर

00:05, 21 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण

शाम का रंग फिर पुराना है
जा रहे हैं बस्तियों की ओर फुटपाथ
जा रही झील कोई दफ़्तर से
नौकरी से लेकर जवाब
पी रही है झील कोई जल की प्यास
चल पड़ा है शहर कुछ गाँवों की राह
फेंक कर कोई जा रहा है सारी कमाई
 
पोंछता आ रहा कोई धोती से खून
कमज़ोर पशुओं के शरीर से आरे का खून
 
शाम का रंग फिर पुराना है
छोड़ चले हैं एक और ग़ैरों की ज़मीन
छज्जे वाले
जा रहा है लम्बा वादा
झिड़कियों का भण्डार लादे
 
लम्बे सायों के साथ-साथ गधों पर
बैठे हैं शिशु
 
पिताओं के हाथ में कुत्ते हैं
माताओं की पीठ पीछे बंधे पतीले हैं
पतीलों में माँओं के बच्चे सोए हैं
 
जा रहा है लम्बा वादा
कन्धों पर उठाए झोंपड़ी के बांस
भूख के मारे यह कौन चीख़ रहा है?
ये किस भारत की ज़मीन रोकने जा रहे हैं ?
 
नौजवानों को कुत्ते प्यारे हैं
वे कहाँ पालें
महलों के चेहरों का प्यार ?
 
वे भूखों के शिकार छोड़ चल पड़े हैं
किन्हीं ग़ैरों की ज़मीन की ओर
 
जा रहा है लम्बा वादा
इनकों क्या पता है?
कितने बंधे कीलों के साथ
जलाए जाते हैं रोज़ लोग
जो छोड़ भी नहीं सकते
बस्तियों को किसी रोज़
जा रहा है साथ-साथ
बस्ती के पेड़ों का साया
पकड़ रहा है गृहासक्त पशुओं के पैर
घर के वियोग में तड़पते प्यार के पैर
जा रहा है लम्बा वादा
जा रहा है लम्बा वादा
हर जगह