भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रकृति और हम / अनातोली परपरा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=अनातोली पारपरा |संग्रह=माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली प...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKAnooditRachna | {{KKAnooditRachna | ||
− | |रचनाकार=अनातोली | + | |रचनाकार=अनातोली परपरा |
|संग्रह=माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली परपरा | |संग्रह=माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली परपरा | ||
}} | }} |
18:15, 24 जून 2009 का अवतरण
|
जब भी घायल होता है मन
प्रकृति रखती उस पर मलहम
पर उसे हम भूल जाते हैं
ध्यान कहाँ रख पाते हैं
उसकी नदियाँ, उसके सागर
उसके जंगल और पहाड़
सब हितसाधन करते हमारा
पर उसे दें हम उजाड़
योजना कभी बनाएँ भयानक
कभी सोच लें ऎसे काम
नष्ट करें कुदरत की रौनक
हम, जो उसकी ही सन्तान