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"स्त्री / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर,<br>
 
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नर को धेकेल सकती सत्वर ! <br>
 
नर को धेकेल सकती सत्वर ! <br>

16:13, 3 दिसम्बर 2007 का अवतरण

यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर ,
दल पर दल खोल ह्रदय के अस्तर
जब बिठलाती प्रसन्न होकर
वह अमर प्रणय के शतदल पर !

मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर
क्षण में प्राणों की पीड़ा हर
नवजीवन का दे सकती वर
वह अधरों पर धर मदिराधर .

यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर,
वासनावर्त में दल प्रखर
वह अंध गर्त में चिर दुस्तर
नर को धेकेल सकती सत्वर !