भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम्हें याद है / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=उस जनपद का कवि हूँ / त्रिलोचन }} तुम्हे...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 31: | पंक्ति 31: | ||
उभरी मुख पर, मर्द हो गये हुआ न यह भी?' | उभरी मुख पर, मर्द हो गये हुआ न यह भी?' | ||
− | 'मर्द?''और क्या बच्चा ही होता है वह भी ।' | + | 'मर्द?' 'और क्या बच्चा ही होता है वह भी ।' |
03:26, 11 दिसम्बर 2007 का अवतरण
तुम्हें याद है, उस दिन बाबा पोखर में
हम तुम दोनों साथ स्नान करने पहुँचे थे,
पहले बोल न बात हुई बाहर या घर में;
इधर उधर के तीरों पर बैठे सकुचे थे,
जल उछालते, राह ताकते, कोई आये
अपना हेलीमेली, लेकिन देर हुई थी
हम दोनों को आने में, सब पहले आए
और नहाकर चले गये थे । खिली कुईं थी
तट पर, मैंने तोड़-तोड़कर हार बनाये
दस या बारह, रखा, हला पानी में । देखा
इधर उधर ।'क्या आरपार तुम होकर पाये
खड़े खड़े इस पोखर को ।न।काली रेखा
उभरी मुख पर, मर्द हो गये हुआ न यह भी?'
'मर्द?' 'और क्या बच्चा ही होता है वह भी ।'