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"अधम कहानी / शिरीष कुमार मौर्य" के अवतरणों में अंतर

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और मन टटोलने का क़ायदा अब भी उतना प्रचलित नहीं
 
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लाखों वर्षो में मनुष्‍य के मस्तिष्‍क का विकास इस दिशा में बेकार ही गया है   
 
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जब भी
 
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नाभि से दाना चुगती है होठों की चिडिया
 
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तो डबडबा जाती हैं उसकी आँखें
 
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कुछ प्रेम कुछ पछतावे से
 
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प्राक्-ऐतिहासिक तथ्‍य की तरह याद आता है कि यह भी एक मनुष्‍य ही है
 
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इसे अब प्रेम चाहिए
 
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लानतों से भरा कोई पछतावा नहीं
 
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23:01, 26 मई 2014 के समय का अवतरण

स्त्री देह में धँस जाने की लालसा पुरुषों में पुरानी है
और मन टटोलने का क़ायदा अब भी उतना प्रचलित नहीं
लाखों वर्षो में मनुष्‍य के मस्तिष्‍क का विकास इस दिशा में बेकार ही गया है

जब भी
नाभि से दाना चुगती है होठों की चिडिया
तो डबडबा जाती हैं उसकी आँखें
कुछ प्रेम कुछ पछतावे से


प्राक्-ऐतिहासिक तथ्‍य की तरह याद आता है कि यह भी एक मनुष्‍य ही है
इसे अब प्रेम चाहिए
लानतों से भरा कोई पछतावा नहीं