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"लोकसभा चुनाव 2014 / शिरीष कुमार मौर्य" के अवतरणों में अंतर

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कभी आँखों में नमी महसूस होती
 
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लेकिन पाग़ल नहीं था मैं कि अकेला बैठा गुस्‍साता या रोता
 
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सामान्‍य मनुष्‍य ही था
 
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सामान्‍य मनुष्‍य जैसी ही थीं ये हरक़तें भी
 
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आजकल सामान्‍य होना पाग़ल होना है
 
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और पाग़लों की तरह दहाड़ना-चीख़ना-हुँकारना
 
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सामान्‍यों में रहबरी के सर्वोच्‍च मुकाम हैं  
 
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संयोग मत जानिएगा
 
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पर जून 2014 में मुझे अपने साइको-सोमैटिक पुनर्क्षीण के लिए
 
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दिल्‍ली के अधपग़ले डाक्‍टर के पास जाना है  
 
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23:00, 26 मई 2014 के समय का अवतरण

चढ़ती रातों में कुछ पढ़ते हुए
तमतमा जाता चेहरा
हाथ की नसें तन जातीं
पाँवों में कुछ ऐंठता
कभी आँखों में नमी महसूस होती
गालों पर आँसू की लकीर भी दिखती

लेकिन पाग़ल नहीं था मैं कि अकेला बैठा गुस्‍साता या रोता
सामान्‍य मनुष्‍य ही था
सामान्‍य मनुष्‍य जैसी ही थीं ये हरक़तें भी

आजकल सामान्‍य होना पाग़ल होना है
और पाग़लों की तरह दहाड़ना-चीख़ना-हुँकारना
सामान्‍यों में रहबरी के सर्वोच्‍च मुकाम हैं

संयोग मत जानिएगा
पर जून 2014 में मुझे अपने साइको-सोमैटिक पुनर्क्षीण के लिए
दिल्‍ली के अधपग़ले डाक्‍टर के पास जाना है