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"काशी का जुलहा / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

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09:08, 17 दिसम्बर 2007 के समय का अवतरण


ब्राह्मण को तुकारने वाला वह काशी का

जुलहा जो अपने घर नित्य सूत तनता था

लोगों की नंगई ढाँकता था । आशी का

उन्मूलन करता था जिसका विष बनता था
जाति वर्ण अंहकार । क़ब्रें खनता था
मुल्लों मौलवियों की झूठी शान के लिए

रूढ़ी और भेड़ियाधसान को वह हनता था

शब्द बाण से । जीता था बस ज्ञान के लिए
गिरे हुओं को खड़ा कर गया मान के लिए ।
राम नाम का सुआ शून्य के महल में रहा,

पन्थ-पन्थ को देखा सम्यक ध्यान के लिए

गुरु की महिमा गाई, वचन विचार कर कहा ।


साँई की दी चादर ज्यों की त्यों धर दीनी

इड़ा पिंगला सुखमन के तारों की बीनी ।