"हम क्रांतिकारी नहीं थे / आर. चेतनक्रांति" के अवतरणों में अंतर
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− | लोग जो क्रांति के बारे में किताबें पढ़ते रहते थे | + | लोग जो क्रांति के बारे में किताबें पढ़ते रहते थे<br> |
− | हमें क्रांतिकारी मान लेते थे | + | हमें क्रांतिकारी मान लेते थे<br> |
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− | कई-कई दिन अपने से पीछे | + | कई-कई दिन अपने से पीछे <br> |
− | घिसटते रहते थे | + | घिसटते रहते थे<br><br> |
− | कोई भी चीज़ हमें देर तक | + | कोई भी चीज़ हमें देर तक <br> |
− | आकर्षित नहीं करती थी | + | आकर्षित नहीं करती थी<br><br> |
− | हम बहुत तेज़ी से आकर चिपकते थे | + | हम बहुत तेज़ी से आकर चिपकते थे<br> |
− | और अगले ही पल गालियां देते हुए | + | और अगले ही पल गालियां देते हुए<br> |
− | अगली तरफ भाग लेते थे | + | अगली तरफ भाग लेते थे<br><br> |
− | ज्ञान हमें कन्विंस नहीं कर पाता था | + | ज्ञान हमें कन्विंस नहीं कर पाता था<br> |
− | और किताबें खुलने से पहले | + | और किताबें खुलने से पहले <br> |
− | भुरभुरा जाती थीं | + | भुरभुरा जाती थीं<br><br> |
− | हम अपना दुख कह नहीं पाते थे | + | हम अपना दुख कह नहीं पाते थे<br> |
− | क्योंकि वो हमें झूठ लगता था | + | क्योंकि वो हमें झूठ लगता था<br><br> |
− | हम अपना सुख सह नहीं पाते थे | + | हम अपना सुख सह नहीं पाते थे<br> |
− | क्योंकि उसके लिए हमारे भीतर कोई जगह नहीं थी | + | क्योंकि उसके लिए हमारे भीतर कोई जगह नहीं थी<br> |
− | और वो हमें बहुत भारी लगता था | + | और वो हमें बहुत भारी लगता था<br><br> |
− | हमारे आस-पास बहुत सारी ठोस चीज़ें थीं | + | हमारे आस-पास बहुत सारी ठोस चीज़ें थीं<br> |
− | लेकिन हमें लगता रहता था | + | लेकिन हमें लगता रहता था<br> |
− | किसी भी क्षण हम हवा होकर उनके बीच से निकल जाएंगे | + | किसी भी क्षण हम हवा होकर उनके बीच से निकल जाएंगे<br> |
− | और फिर किसी के हाथ नहीं आएंगे | + | और फिर किसी के हाथ नहीं आएंगे<br> |
− | हम बहुत अकेले थे | + | हम बहुत अकेले थे<br> |
− | और भीड़ में स्तब्ध खड़े रहते थे | + | और भीड़ में स्तब्ध खड़े रहते थे<br> |
− | लोग हमें छूने से डरते थे | + | लोग हमें छूने से डरते थे<br> |
− | + | जैसे कि हम रेत का खम्भा हों<br> | |
− | हम रेत का खम्भा नहीं थे | + | हम रेत का खम्भा नहीं थे<br> |
− | लेकिन लोहे की लाट भी नहीं थे | + | लेकिन लोहे की लाट भी नहीं थे<br> |
− | हम सिर्फ ये नहीं समझ पाए थे | + | हम सिर्फ ये नहीं समझ पाए थे<br> |
− | कि भीड़ से बाहर रहते हुए भी भीड़ में कैसे रहा जाता है | + | कि भीड़ से बाहर रहते हुए भी भीड़ में कैसे रहा जाता है<br> |
− | जबकि ज़्यादातर चीज़े इसी पर निर्भर थीं | + | जबकि ज़्यादातर चीज़े इसी पर निर्भर थीं<br><br> |
− | कोई शिक्षा संस्थान हमें चालाकी नहीं सिखा पाया था | + | कोई शिक्षा संस्थान हमें चालाकी नहीं सिखा पाया था<br> |
− | मार्च की गुनगुनी धूप हमें पागल कर देती थी | + | मार्च की गुनगुनी धूप हमें पागल कर देती थी<br> |
− | और हम सबकुछ भूल जाते थे | + | और हम सबकुछ भूल जाते थे<br><br> |
− | हम प्यार करना चाहते थे | + | हम प्यार करना चाहते थे <br> |
− | लेकिन कर नहीं पाते थे | + | लेकिन कर नहीं पाते थे<br> |
− | हम लिंगभेद से परेशान थे | + | हम लिंगभेद से परेशान थे <br> |
− | और संबंधभेद से भी | + | और संबंधभेद से भी<br><br> |
− | समर्पित योनियां और आक्रामक शिश्न | + | समर्पित योनियां और आक्रामक शिश्न<br> |
− | हमारी वासना की नैतिकता को कचौटते थे | + | हमारी वासना की नैतिकता को कचौटते थे<br> |
− | और हम बलात्कार को अनंतकाल के लिए स्थगित कर देते थे | + | और हम बलात्कार को अनंतकाल के लिए स्थगित कर देते थे<br><br> |
− | हम अपने ही शरीर में एक शिश्न और एक योनि साथ-साथ चाहते थे | + | हम अपने ही शरीर में एक शिश्न और एक योनि साथ-साथ चाहते थे<br> |
− | ताकि हमें भाषा का सहारा ना लेना पड़े | + | ताकि हमें भाषा का सहारा ना लेना पड़े<br><br> |
− | हमारे पास बहुत कम शब्द रह गए थे | + | हमारे पास बहुत कम शब्द रह गए थे<br> |
− | जिन पर हमें यकीन था | + | जिन पर हमें यकीन था<br> |
− | और उनका इस्तेमाल हम कभी-कभी करते थे | + | और उनका इस्तेमाल हम कभी-कभी करते थे<br><br> |
− | हम गूंगे हो जाने को तैयार थे | + | हम गूंगे हो जाने को तैयार थे<br> |
− | पर उसकी भी गुंजाइश नहीं थी | + | पर उसकी भी गुंजाइश नहीं थी<br> |
− | हर बात का जवाब हमें देना पड़ता था | + | हर बात का जवाब हमें देना पड़ता था<br> |
− | और हर सवाल हमसे पूछा जाता था | + | और हर सवाल हमसे पूछा जाता था<br><br> |
− | हर जगह, हर समय एक युद्ध चल रहा था | + | हर जगह, हर समय एक युद्ध चल रहा था<br> |
− | हम लड़ना नहीं चाहते थे | + | हम लड़ना नहीं चाहते थे<br> |
− | लेकिन भागना भी हमारे वश में नहीं था | + | लेकिन भागना भी हमारे वश में नहीं था<br><br> |
− | हम हारे, हम थके, हम पीछे हटे, हमने सारे हथियार उन्हें सौंप दिए | + | हम हारे, हम थके, हम पीछे हटे, हमने सारे हथियार उन्हें सौंप दिए<br> |
− | बाक़ायदा उनसे पिटे भी | + | बाक़ायदा उनसे पिटे भी<br> |
− | लेकिन हमें जाने नहीं दिया गया | + | लेकिन हमें जाने नहीं दिया गया<br><br> |
− | हमने परम्परागत आपत्तियों को मौक़ा देना छोड़ दिया | + | हमने परम्परागत आपत्तियों को मौक़ा देना छोड़ दिया<br> |
− | परम्परागत पैंतरों को उत्तेजित करना छोड़ दिया | + | परम्परागत पैंतरों को उत्तेजित करना छोड़ दिया<br> |
− | इस तरह हम फालतू हुए | + | इस तरह हम फालतू हुए<br><br> |
− | युद्ध के लिए बेकार | + | युद्ध के लिए बेकार<br> |
− | तब उन्हें यकीन हुआ कि हम लड़ नहीं सकते | + | तब उन्हें यकीन हुआ कि हम लड़ नहीं सकते<br><br> |
− | वे एक-दूसरे को लड़ने की सुविधा देते हुए लड़ रहे थे | + | वे एक-दूसरे को लड़ने की सुविधा देते हुए लड़ रहे थे<br> |
− | उनके बीच एक समझौता था | + | उनके बीच एक समझौता था<br> |
− | जो अनन्त से चला आ रहा था | + | जो अनन्त से चला आ रहा था<br> |
− | हमने उसे तोड़ा | + | हमने उसे तोड़ा<br> |
− | इस तरह युद्ध क्षेत्र के बीच हम बचे | + | इस तरह युद्ध क्षेत्र के बीच हम बचे<br><br> |
− | निस्सन्देह हमारा युद्ध नहीं था वह | + | निस्सन्देह हमारा युद्ध नहीं था वह<br> |
− | और हम शुरू से इसे जानते थे | + | और हम शुरू से इसे जानते थे<br><br> |
− | जो भी हमसे भिड़ा छटपटाते हुए मरा | + | जो भी हमसे भिड़ा छटपटाते हुए मरा<br> |
− | क्योंकि वो लड़ने का आदी हो चला था | + | क्योंकि वो लड़ने का आदी हो चला था<br> |
− | और हम बैठे सिगरेट पीते रहते थे | + | और हम बैठे सिगरेट पीते रहते थे<br><br> |
− | हम दफ्तरों से, घरों से, पिताओं और | + | हम दफ्तरों से, घरों से, पिताओं और<br> |
− | पत्नियों से भागकर | + | पत्नियों से भागकर<br> |
− | सड़कों पर चले आते थे | + | सड़कों पर चले आते थे<br> |
− | जो सूनी होती थीं | + | जो सूनी होती थीं<br> |
− | और बहुत सारे लोग उन पर आवाज़ किए बगैर रेंगते रहते थे | + | और बहुत सारे लोग उन पर आवाज़ किए बगैर रेंगते रहते थे<br><br> |
− | हर सड़क से हमारा कोई न कोई रिश्ता निकल आता था | + | हर सड़क से हमारा कोई न कोई रिश्ता निकल आता था<br> |
− | और हम कम-से-कम एक दिन उसके नाम कर देते थे | + | और हम कम-से-कम एक दिन उसके नाम कर देते थे<br><br> |
− | हम मौत से भाग रहे थे | + | हम मौत से भाग रहे थे<br> |
− | एक दिन हमें अचानक मालूम हुआ | + | एक दिन हमें अचानक मालूम हुआ<br> |
− | कि वो हमारे पीछे-पीछे चल रही थी | + | कि वो हमारे पीछे-पीछे चल रही थी<br> |
− | हमारा हर क़दम मौत के आगे था | + | हमारा हर क़दम मौत के आगे था<br> |
− | और उसका हर क़दम हमारे पीछे | + | और उसका हर क़दम हमारे पीछे<br><br> |
− | हम जीवन-भर एक भी क़दम अपनी इच्छा से नहीं चले | + | हम जीवन-भर एक भी क़दम अपनी इच्छा से नहीं चले<br> |
− | हमें कोई पीछे से धक्का देता था | + | हमें कोई पीछे से धक्का देता था<br> |
− | हमें सिर्फ़ भय लगता था | + | हमें सिर्फ़ भय लगता था<br> |
− | वहीं हमारी इच्छा थी | + | वहीं हमारी इच्छा थी<br><br> |
− | हम क्रांतिकारी नहीं थे | + | हम क्रांतिकारी नहीं थे<br> |
− | हम सिर्फ अस्थिर थे | + | हम सिर्फ अस्थिर थे<br> |
− | और स्थगित.... | + | और स्थगित....<br><br> |
− | ये हमने मरने के बाद जाना कि | + | ये हमने मरने के बाद जाना कि<br> |
− | वो स्थगन ही | + | वो स्थगन ही <br> |
दरअसल उस समय की सबसे बड़ी क्रांति था | दरअसल उस समय की सबसे बड़ी क्रांति था |
19:18, 24 दिसम्बर 2007 का अवतरण
हम क्रांतिकारी नहीं थे
हम सिर्फ अस्थिर थे
और इस अस्थिरता में कई बार
कुछ नाजुक मौक़ों पर
जो हमें कहीं से कहीं पहुंचा सकते थे
अराजक हो जाते थे
लोग जो क्रांति के बारे में किताबें पढ़ते रहते थे
हमें क्रांतिकारी मान लेते थे
जबकि हम क्रांतिकारी नहीं थे
हम सिर्फ अस्थिर थे
हम बहुत ऊपर
और बहुत नीचे
लगातार आते-जाते रहते थे
हम तेज़ भागते थे अपने आगे-आगे
और कई बार हम पीछे छूट जाते थे
कई-कई दिन अपने से पीछे
घिसटते रहते थे
कोई भी चीज़ हमें देर तक
आकर्षित नहीं करती थी
हम बहुत तेज़ी से आकर चिपकते थे
और अगले ही पल गालियां देते हुए
अगली तरफ भाग लेते थे
ज्ञान हमें कन्विंस नहीं कर पाता था
और किताबें खुलने से पहले
भुरभुरा जाती थीं
हम अपना दुख कह नहीं पाते थे
क्योंकि वो हमें झूठ लगता था
हम अपना सुख सह नहीं पाते थे
क्योंकि उसके लिए हमारे भीतर कोई जगह नहीं थी
और वो हमें बहुत भारी लगता था
हमारे आस-पास बहुत सारी ठोस चीज़ें थीं
लेकिन हमें लगता रहता था
किसी भी क्षण हम हवा होकर उनके बीच से निकल जाएंगे
और फिर किसी के हाथ नहीं आएंगे
हम बहुत अकेले थे
और भीड़ में स्तब्ध खड़े रहते थे
लोग हमें छूने से डरते थे
जैसे कि हम रेत का खम्भा हों
हम रेत का खम्भा नहीं थे
लेकिन लोहे की लाट भी नहीं थे
हम सिर्फ ये नहीं समझ पाए थे
कि भीड़ से बाहर रहते हुए भी भीड़ में कैसे रहा जाता है
जबकि ज़्यादातर चीज़े इसी पर निर्भर थीं
कोई शिक्षा संस्थान हमें चालाकी नहीं सिखा पाया था
मार्च की गुनगुनी धूप हमें पागल कर देती थी
और हम सबकुछ भूल जाते थे
हम प्यार करना चाहते थे
लेकिन कर नहीं पाते थे
हम लिंगभेद से परेशान थे
और संबंधभेद से भी
समर्पित योनियां और आक्रामक शिश्न
हमारी वासना की नैतिकता को कचौटते थे
और हम बलात्कार को अनंतकाल के लिए स्थगित कर देते थे
हम अपने ही शरीर में एक शिश्न और एक योनि साथ-साथ चाहते थे
ताकि हमें भाषा का सहारा ना लेना पड़े
हमारे पास बहुत कम शब्द रह गए थे
जिन पर हमें यकीन था
और उनका इस्तेमाल हम कभी-कभी करते थे
हम गूंगे हो जाने को तैयार थे
पर उसकी भी गुंजाइश नहीं थी
हर बात का जवाब हमें देना पड़ता था
और हर सवाल हमसे पूछा जाता था
हर जगह, हर समय एक युद्ध चल रहा था
हम लड़ना नहीं चाहते थे
लेकिन भागना भी हमारे वश में नहीं था
हम हारे, हम थके, हम पीछे हटे, हमने सारे हथियार उन्हें सौंप दिए
बाक़ायदा उनसे पिटे भी
लेकिन हमें जाने नहीं दिया गया
हमने परम्परागत आपत्तियों को मौक़ा देना छोड़ दिया
परम्परागत पैंतरों को उत्तेजित करना छोड़ दिया
इस तरह हम फालतू हुए
युद्ध के लिए बेकार
तब उन्हें यकीन हुआ कि हम लड़ नहीं सकते
वे एक-दूसरे को लड़ने की सुविधा देते हुए लड़ रहे थे
उनके बीच एक समझौता था
जो अनन्त से चला आ रहा था
हमने उसे तोड़ा
इस तरह युद्ध क्षेत्र के बीच हम बचे
निस्सन्देह हमारा युद्ध नहीं था वह
और हम शुरू से इसे जानते थे
जो भी हमसे भिड़ा छटपटाते हुए मरा
क्योंकि वो लड़ने का आदी हो चला था
और हम बैठे सिगरेट पीते रहते थे
हम दफ्तरों से, घरों से, पिताओं और
पत्नियों से भागकर
सड़कों पर चले आते थे
जो सूनी होती थीं
और बहुत सारे लोग उन पर आवाज़ किए बगैर रेंगते रहते थे
हर सड़क से हमारा कोई न कोई रिश्ता निकल आता था
और हम कम-से-कम एक दिन उसके नाम कर देते थे
हम मौत से भाग रहे थे
एक दिन हमें अचानक मालूम हुआ
कि वो हमारे पीछे-पीछे चल रही थी
हमारा हर क़दम मौत के आगे था
और उसका हर क़दम हमारे पीछे
हम जीवन-भर एक भी क़दम अपनी इच्छा से नहीं चले
हमें कोई पीछे से धक्का देता था
हमें सिर्फ़ भय लगता था
वहीं हमारी इच्छा थी
हम क्रांतिकारी नहीं थे
हम सिर्फ अस्थिर थे
और स्थगित....
ये हमने मरने के बाद जाना कि
वो स्थगन ही
दरअसल उस समय की सबसे बड़ी क्रांति था