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"आभार / स्वप्निल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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जिस दिन अर्जुन ने चिडिया की आँख पर निशाना लगाया था
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हमें भले ही कुछ न मिला हो लेकिन यह जीवन तो मिला है
उसी दिन हिंसा की शुरूआत हो गई थी ।
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जिसके लिए मैं अपने माता-पिता का आभारी हूँ
द्रौपदी को द्यूत क्रीड़ा  में हार जाने के बाद यह तय हो
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उनके नाते मै इस दुनिया में आया
गया था कि स्त्री को दाँव पर लगाया जा सकता है
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उनकी दी हुई आँखों से देखी यह दुनिया
चीरहरण को चुपचाप देखनेवाले धर्माचार्य और बुद्धिजीवी
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उन्होने ज़मीन पर चलने के लिए दिए पाँव
इतिहास में अपनी भूमिका संदिग्ध कर चुके थे ।
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हाथों के बारे में उन्होने बताया कि यह शरीर का
यह स्त्री अपमान की पहली घटना थी ।
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सबसे ज़रूरी अंग है जिससे तुम बदल सकते
 
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हो जीवन
धृतराष्ट्र किसी राजा का नाम नही एक अन्धे नायक
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    क्या क्या है इस दुनिया में -- पहाड़, नदियाँ आकाश परिन्दे और समुन्दर
का नाम है जिसने पुत्रमोह में युद्ध को जन्म दिया था
+
    बच्चे इस दुनिया को करते है गुलजार
युद्ध के बाद बचते है शव विधवायें अनाथ बच्चे और
+
इस दुनिया में रहती है स्त्रियाँ
इतिहास के माथें  पर कुछ कलंक
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वे कुछ न कुछ रचती रहती हैं
अन्त में विजेताओं को बर्फ़ मे गलने के लिए
+
वे अपने गर्भ में छिपाए रहती है आदमी के बीज
अभिशप्त होना पडता है ।
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वक्ष में दूध के झरने
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ईश्वर हैं हमारे माता-पिता
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वे हमे गढ़ते हैं
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हमारे भीतर करते हैं प्राण-प्रतिष्ठा
 
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16:57, 6 जुलाई 2014 के समय का अवतरण

हमें भले ही कुछ न मिला हो लेकिन यह जीवन तो मिला है
जिसके लिए मैं अपने माता-पिता का आभारी हूँ
उनके नाते मै इस दुनिया में आया
उनकी दी हुई आँखों से देखी यह दुनिया
उन्होने ज़मीन पर चलने के लिए दिए पाँव
हाथों के बारे में उन्होने बताया कि यह शरीर का
सबसे ज़रूरी अंग है जिससे तुम बदल सकते
हो जीवन
     क्या क्या है इस दुनिया में -- पहाड़, नदियाँ आकाश परिन्दे और समुन्दर
     बच्चे इस दुनिया को करते है गुलजार
इस दुनिया में रहती है स्त्रियाँ
वे कुछ न कुछ रचती रहती हैं
वे अपने गर्भ में छिपाए रहती है आदमी के बीज
वक्ष में दूध के झरने
ईश्वर हैं हमारे माता-पिता
वे हमे गढ़ते हैं
हमारे भीतर करते हैं प्राण-प्रतिष्ठा