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"राह हारी मैं न हारा / शील" के अवतरणों में अंतर

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जो प्रकृति के जन्म ही से ले चुके गति का सहारा !
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स्वप्न मग्ना रात्रि सोई,
 
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थक गए वन-विहग, मृगतरु
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पर न अब तक थका मेरे लक्ष्य का ध्रुव-ध्येय तारा ।
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3 नवम्बर 1945
 
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01:12, 29 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

राह हारी मैं न हारा !

थक गए पथ धूल के —
उड़ते हुए रज-कण घनेरे ।
पर न अब तक मिट सके हैं,
वायु में पदचिह्न मेरे ।
जो प्रकृति के जन्म ही से —
ले चुके गति का सहारा !
राह हारी मैं न हारा !

स्वप्न मग्ना रात्रि सोई,
दिवस संध्या के किनारे
थक गए वन-विहग, मृग, तरु —
थके सूरज-चाँद-तारे ।
पर न अब तक थका मेरे —
लक्ष्य का ध्रुव-ध्येय तारा ।
राह हारी मैं न हारा !

3 नवम्बर 1945