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पिता, तुम्हारी यादों में
 
पिता, तुम्हारी यादों में

01:05, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

पिता, तुम्हारी यादों में

खो जाता है मन

मेरे नन्हें पाँव

तुम्हारे कन्धों पर

चढ़ने को बेचैन

हुआ करते थे जब

कितने सुन्दर

और हुआ करते थे दिन !


पिता, तुम्हें गुज़रे

हो गए कितने दिन

यातना का पहाड़ ढोता मन तुम्हारा

थक न पाया था

न टूटा था

तुम्हारा आत्मबल ही


तुम्हारी जर्जर आकृति पर टिकी थी

कई आँखें । जो तुम्हारे साथ

करती आ रही थीं एक लम्बी यात्रा

उस कष्टप्रद यात्रा में शरीक़

यह मकान (जिसके हम उत्पादन हैं)

तुम्हारी तकलीफ़ों के साथ तुम्हें

झेलता आया था पिता


पिता, ज़िन्दगी भर तुम्हें

ज़िन्दगी का साथ रहा

इसीलिए ज़िन्दगी भर तुम

लड़ते रहे ज़िन्दगी की लड़ाई

अब तुम्हारे

नहीं रहने पर भी

तुम्हारी लड़ाई

और बल से लड़ रहा हूँ


तुम कभी नहीं हारे थे, पिता

न कभी हारोगे