"गो-चारण / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
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कैसेहुँ आजु जसोदा छाँड़्यौ, काल्हि न आवन पैहौं ।<br> | कैसेहुँ आजु जसोदा छाँड़्यौ, काल्हि न आवन पैहौं ।<br> | ||
सोवत मोकौं टेरि लेहुगे, बाबा नंद-दुहाई ।<br> | सोवत मोकौं टेरि लेहुगे, बाबा नंद-दुहाई ।<br> | ||
− | सूर स्याम बिनती करि बल सों, सखनि समेत सुनाई ॥2॥ | + | सूर स्याम बिनती करि बल सों, सखनि समेत सुनाई ॥2॥<br><br> |
− | बिहारी लाल, आवहु, आई छाक । | + | बिहारी लाल, आवहु, आई छाक ।<br> |
− | भई अबार, गाइ बहुरावहु, उलटावहु दै हाँक । | + | भई अबार, गाइ बहुरावहु, उलटावहु दै हाँक ।<br> |
− | अर्जुन, भोज अरु सुबल, सुदामा, मधुमंगल इक ताक । | + | अर्जुन, भोज अरु सुबल, सुदामा, मधुमंगल इक ताक ।<br> |
− | मिलि बैठ सन जेवन लागे, बहुत बने कहि पाक । | + | मिलि बैठ सन जेवन लागे, बहुत बने कहि पाक ।<br> |
− | अपनी पत्रावलि सब देखत, जहँ-तहँ फेनि पिराक । | + | अपनी पत्रावलि सब देखत, जहँ-तहँ फेनि पिराक ।<br> |
− | सूरदास प्रभु खात ग्वाल सँग, ब्रह्मलोक यह धाक | + | सूरदास प्रभु खात ग्वाल सँग, ब्रह्मलोक यह धाक ॥3॥<br><br> |
− | ब्रज मैं को उपज्यौ यह भैया । | + | ब्रज मैं को उपज्यौ यह भैया ।<br> |
− | संग सखा सब कहत परस्पर, इनके गुन अगमैया । | + | संग सखा सब कहत परस्पर, इनके गुन अगमैया ।<br> |
− | जब तैं ब्रज अवतार धर्यौ, इन, कोउ नहिं घात करैया । | + | जब तैं ब्रज अवतार धर्यौ, इन, कोउ नहिं घात करैया ।<br> |
− | तृनावर्त पूतना पछारी, तब अति रहे नन्हैया । | + | तृनावर्त पूतना पछारी, तब अति रहे नन्हैया ।<br> |
− | कितिक बात यह बका विदार्यौ, धनि जसुमति जिन जैया | + | कितिक बात यह बका विदार्यौ, धनि जसुमति जिन जैया<br> |
− | सूरदास प्रभु की यह लीला, हम कत जिय पछितैया | + | सूरदास प्रभु की यह लीला, हम कत जिय पछितैया ॥4॥<br><br> |
− | आजु जसोदा जाइ कन्हैया महा दुष्ट इक माँर्यौ ॥ | + | आजु जसोदा जाइ कन्हैया महा दुष्ट इक माँर्यौ ॥<br> |
− | पन्नग-रूप मिले सिसु गो-सुत इहिं सब साथ उबार्यौ । | + | पन्नग-रूप मिले सिसु गो-सुत इहिं सब साथ उबार्यौ ।<br> |
− | गिरि -कंदरा समान भयानक जब अघ बदन पसार्यौ । | + | गिरि -कंदरा समान भयानक जब अघ बदन पसार्यौ ।<br> |
− | निडर गोपाल पैठि मुख भीतर, खंड-खंड करि डार्यौ । | + | निडर गोपाल पैठि मुख भीतर, खंड-खंड करि डार्यौ ।<br> |
− | याकैं बल हम बदत न काहुहिं, सकल भूमि तृन चार्यौ । | + | याकैं बल हम बदत न काहुहिं, सकल भूमि तृन चार्यौ ।<br> |
− | जीते सबै असुर हम आगैं, हरि कबहुँ नहिं हार्यौ । | + | जीते सबै असुर हम आगैं, हरि कबहुँ नहिं हार्यौ ।<br> |
− | हरषि गए सब कहनि महरि सौं अबहिं अघासुर मार्यौ । | + | हरषि गए सब कहनि महरि सौं अबहिं अघासुर मार्यौ ।<br> |
− | सूरदास प्रभु की यह लीला ब्रज कौ काज सँवार्यौ | + | सूरदास प्रभु की यह लीला ब्रज कौ काज सँवार्यौ ॥5॥<br><br> |
− | ब्रह्मा बालक-बच्छ हरे । | + | ब्रह्मा बालक-बच्छ हरे ।<br> |
− | आदि अंत प्रभु अंतरजामी, मनसा तैं जु करे । | + | आदि अंत प्रभु अंतरजामी, मनसा तैं जु करे ।<br> |
− | सोइ रूप वै बालक गौ-सुत, गोकुल जाइ भरे । | + | सोइ रूप वै बालक गौ-सुत, गोकुल जाइ भरे ।<br> |
− | एक बरष निसि बासर रहि सँग, कहु न जानि परे । | + | एक बरष निसि बासर रहि सँग, कहु न जानि परे ।<br> |
− | त्रास भयौ अपराध आपु लखि, अस्तुति करत सरे । | + | त्रास भयौ अपराध आपु लखि, अस्तुति करत सरे ।<br> |
− | सूरदास स्वामी मनमोहन, तामै मन न धरे | + | सूरदास स्वामी मनमोहन, तामै मन न धरे ॥6॥<br><br> |
− | आजु कन्हैया बहुत बच्यौ री । | + | आजु कन्हैया बहुत बच्यौ री ।<br> |
− | खेलत रह्यौ घोष कैं बाहर, कोउ आयौ सिसु रूप रच्यौ री । | + | खेलत रह्यौ घोष कैं बाहर, कोउ आयौ सिसु रूप रच्यौ री ।<br> |
− | मिलि गयौ आइ सखा की नाईं, लै चढ़ाइ हरि कंध सच्यौ री । | + | मिलि गयौ आइ सखा की नाईं, लै चढ़ाइ हरि कंध सच्यौ री । <br> |
− | गगन उड़ाइ गयौ लै स्यामहि, आनि धरनि पर आप दच्यौ री । | + | गगन उड़ाइ गयौ लै स्यामहि, आनि धरनि पर आप दच्यौ री ।<br> |
+ | धर्म सहाइ होत है जहँ-जहँ स्रम करी पूरब पुन्य पच्यौ री ।<br> | ||
+ | सूर स्याम अब कैं बचि आए, ब्रज-घर-घर सुख-सिंधु मच्यौ री ॥7॥<br><br> | ||
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+ | अब कैं राखि लेहु गोपाल ।<br> | ||
+ | दसहुँ दिसा दुसह दावागिनि उपजी है इहिं काल ।<br> | ||
+ | पटकत बाँस, काँस कुल चटकत, लटकत ताल तमाल ।<br> | ||
+ | उचटत अति अंगार, फुटत फर, झपटत लपट कराल ।<br> | ||
+ | घूम धूँधि बाढ़ी घर अंबर, चमकत बिच-बिच ज्वाल ।<br> | ||
+ | हरिन,बराह, मोर, चातक, पिक जरत जीव बेहाल ॥<br> | ||
+ | जनि जिय डरहु, नैन मूँदहु सब, हँसि बोले नँदलाल ।<br> | ||
+ | सूर अगिनि सब बदन समानी ,अभय किये ब्रज-बाल ॥8॥<br><br> | ||
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− | + | बन तैं आवत धेनु चराए ।<br> | |
− | + | संध्या समय साँवरे मुख पर, गो-पद-रज लपटाए ।<br> | |
− | + | बरह मुकुट कैं निकट लसति लट, मधुप मनौ रुचि पाए ।<br> | |
− | + | बिलसत सुधा जलज-आनन पर, उड़त न जात उड़ाए ।<br> | |
− | बन तैं आवत धेनु चराए । | + | बिधि बाहन-भच्छन की माला, राजत उर पहिराए ।<br> |
− | संध्या समय साँवरे मुख पर, गो-पद-रज लपटाए । | + | एक बरन बपु नहिं बड़ छोटे, ग्वाल बने इक धाए ।<br> |
− | बरह मुकुट कैं निकट लसति लट, मधुप मनौ रुचि पाए । | + | सूरदास बलि लीला प्रभु की, जीवत जन जस गाए ॥9॥<br><br> |
− | बिलसत सुधा जलज-आनन पर, उड़त न जात उड़ाए । | + | |
− | बिधि बाहन-भच्छन की माला, राजत उर पहिराए । | + | |
− | एक बरन बपु नहिं बड़ छोटे, ग्वाल बने इक धाए । | + | |
− | सूरदास बलि लीला प्रभु की, जीवत जन जस गाए | + | |
− | मैया बहुत बुरो बलदाऊ । | + | मैया बहुत बुरो बलदाऊ ।<br> |
− | कहन लग्यौ मन बड़ो तमासी, सब मोढ़ा मिलि आऊ । | + | कहन लग्यौ मन बड़ो तमासी, सब मोढ़ा मिलि आऊ ।<br> |
− | मोहुँ कौं चुचकार गयो लै, जहाँ सघन बन झाऊ । | + | मोहुँ कौं चुचकार गयो लै, जहाँ सघन बन झाऊ ।<br> |
− | भागि चलौ कहि गयौ उहाँ तै, काटि खाइ रे हाऊ । | + | भागि चलौ कहि गयौ उहाँ तै, काटि खाइ रे हाऊ ।<br> |
− | हौं डरपौं अरु रोवौं, कोउ नहिं धीर धराऊ । | + | हौं डरपौं अरु रोवौं, कोउ नहिं धीर धराऊ ।<br> |
− | थरसि गयौं नहिं भागि सकौं, वै भागे जात अगाऊ । | + | थरसि गयौं नहिं भागि सकौं, वै भागे जात अगाऊ ।<br> |
− | मोसौं कहत मोल कौ लीनो, आपु कहावत साऊ । | + | मोसौं कहत मोल कौ लीनो, आपु कहावत साऊ ।<br> |
− | सूरदास बल बड़ौ चबाई, तैसेहिं मिले सखाऊ | + | सूरदास बल बड़ौ चबाई, तैसेहिं मिले सखाऊ ॥10॥<br><br> |
− | मैया हौं न चरैहौं गाइ । | + | मैया हौं न चरैहौं गाइ ।<br> |
− | सिगरे ग्वाल घिरावत मोसौं, मेरे पाइ पिराइ । | + | सिगरे ग्वाल घिरावत मोसौं, मेरे पाइ पिराइ ।<br> |
− | जौ न पत्याहि पूछि बलदाऊहिं, अपनी सौंह दिवाइ । | + | जौ न पत्याहि पूछि बलदाऊहिं, अपनी सौंह दिवाइ ।<br> |
− | यह सुनि माइ जसोदा ग्वालनि, गारी देति रिसाइ । | + | यह सुनि माइ जसोदा ग्वालनि, गारी देति रिसाइ ।<br> |
− | मैं पठवति अपने लरिका कौं, आवै मन बहराइ । | + | मैं पठवति अपने लरिका कौं, आवै मन बहराइ ।<br> |
− | सूर स्याम मेरौ अति बालक, मारत ताहि रिंगाइ | + | सूर स्याम मेरौ अति बालक, मारत ताहि रिंगाइ ॥11॥<br><br> |
− | धनि यह वृंदावन की रेनु । | + | धनि यह वृंदावन की रेनु ।<br> |
− | नंद-किसोर चरावत गैयाँ, मुखहिं बजावत बेनु । | + | नंद-किसोर चरावत गैयाँ, मुखहिं बजावत बेनु ।<br> |
− | मन-मोहन कौ ध्यान धरै जिय, अति सुख पावत चैन । | + | मन-मोहन कौ ध्यान धरै जिय, अति सुख पावत चैन ।<br> |
− | चलत कहाँ मन और पुरी तन, जहँ कछु लैन न दैनु । | + | चलत कहाँ मन और पुरी तन, जहँ कछु लैन न दैनु ।<br> |
− | इहाँ रहहु जहँ जूठनि पावहु, ब्रजवासिन कै ऐनु । | + | इहाँ रहहु जहँ जूठनि पावहु, ब्रजवासिन कै ऐनु ।<br> |
− | सूरदास ह्याँ की सरवरि नहि, कल्पवृच्छ सुर-धैनु | + | सूरदास ह्याँ की सरवरि नहि, कल्पवृच्छ सुर-धैनु ॥12॥<br><br> |
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− | + | सोवत नींद आइ गई स्यामहिं ।<br> | |
− | + | महरि उठी पौढ़ाइ दुहुँनि कौं, आपु लगी गृह कामहिं ।<br> | |
− | + | बरजति है घर के लोगनि कौं, हरुऐं लै-लै नामहिं ।<br> | |
− | + | गाढ़ै बोलि न पावत कोऊ, डर मोहन बलरामहिं ।<br> | |
− | + | सिव सनकादि अंत नहिं पावत, ध्यावत अह-निसि जामहिं ।<br> | |
− | सूरदास प्रभु | + | सूरदास-प्रभु ब्रह्म सनातन, सो सोवत नँद-धामहिं ॥13॥<br><br> |
− | + | देखत नंद कान्ह अति सोवत ।<br> | |
− | + | भूखे भए आजु बन-भीतर, यह कहि कहि मुख जोवत ।<br> | |
− | + | कह्यौ नहीं मानत काहू कौ, आपु हठी दोउ बीर ।<br> | |
− | + | बार-बार तनु पोंछत कर सों , अतिहिं प्रेम की पीर ।<br> | |
− | + | सेज मँगाइ लई तहँ अपनी, जहाँ स्याम-बलराम ।<br> | |
− | + | सूरदास प्रभु कै ढिग सोए, सँग पौढ़ी नँद-बाम ॥14॥<br><br> | |
− | मैं बरज्यौ जमुना-तट जात । | + | जागि उठे तब कुँवर कन्हाई ।<br> |
− | सुधि रहि गई न्हात की तेरै, जनि डरपौ मेरे तात । | + | मैया कहाँ गई मो ढिग तै, संग सोवति बल भाई ।<br> |
− | नंद उठाइ लियौ कोरा करि, अपने संग पौढ़ाइ । | + | जागे नंद, जसोदा जागी, बोलि लिए हरि पास ।<br> |
− | वृंदावन मैं फिरत जहाँ तहँ, किहिं कारन तू जाइ । | + | सोवत झझकि उठे काहे तै; दीपक कियौ प्रकास ।<br> |
− | अब जनि जैहौ गाइ चरावन, कहँ को रहति बलाइ । | + | सपनैं कूदि पर्यौ जमुना दह, काहूँ दियो गिराइ ।<br> |
− | सूर स्याम दंपति बिच सोए, नींद गई तब आइ | + | सूर स्याम सौं कहति जसोदा, जनि हो लाल डराइ ॥15॥<br><br> |
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+ | मैं बरज्यौ जमुना-तट जात ।<br> | ||
+ | सुधि रहि गई न्हात की तेरै, जनि डरपौ मेरे तात ।<br> | ||
+ | नंद उठाइ लियौ कोरा करि, अपने संग पौढ़ाइ । <br> | ||
+ | वृंदावन मैं फिरत जहाँ तहँ, किहिं कारन तू जाइ ।<br> | ||
+ | अब जनि जैहौ गाइ चरावन, कहँ को रहति बलाइ ।<br> | ||
+ | सूर स्याम दंपति बिच सोए, नींद गई तब आइ ॥16॥ |
03:33, 3 जनवरी 2008 के समय का अवतरण
आजु मैं गाइ चरावन जैहौं ।
बृंदाबन के भाँति भाँति फल अपने कर मैं खैहौं ।
ऐसी बात कहौ जनि बारे, देखौ अपनी भाँति ।
तनक तनक पग चलिहौ कैसैं, आवत ह्वैं है अति राति ।
प्रात जात गैया लै चारन, घर आवत हैं साँझ ।
तुम्हरौ कमल बदन कुम्हिलैहै, रेंगत घामहिं माँझ ।
तेरी सौं मोहिं घाम न लागत, भूख नहीं कछु नेक ।
सूरदास प्रभु कह्यौ न मानत , पर्यौ आपनो टेक ॥1॥
बृंदावन देख्यौ नँम-नंदन, अतिहिं परम सुख पायौ ।
जहँ-जहँ गाइ चरति ग्वालनि सँग, तहँ-तहँ आपुन धायौ ।
बलदाऊ मोकौं जनि छाँड़ौ संग तुम्हारैं ऐहौं ।
कैसेहुँ आजु जसोदा छाँड़्यौ, काल्हि न आवन पैहौं ।
सोवत मोकौं टेरि लेहुगे, बाबा नंद-दुहाई ।
सूर स्याम बिनती करि बल सों, सखनि समेत सुनाई ॥2॥
बिहारी लाल, आवहु, आई छाक ।
भई अबार, गाइ बहुरावहु, उलटावहु दै हाँक ।
अर्जुन, भोज अरु सुबल, सुदामा, मधुमंगल इक ताक ।
मिलि बैठ सन जेवन लागे, बहुत बने कहि पाक ।
अपनी पत्रावलि सब देखत, जहँ-तहँ फेनि पिराक ।
सूरदास प्रभु खात ग्वाल सँग, ब्रह्मलोक यह धाक ॥3॥
ब्रज मैं को उपज्यौ यह भैया ।
संग सखा सब कहत परस्पर, इनके गुन अगमैया ।
जब तैं ब्रज अवतार धर्यौ, इन, कोउ नहिं घात करैया ।
तृनावर्त पूतना पछारी, तब अति रहे नन्हैया ।
कितिक बात यह बका विदार्यौ, धनि जसुमति जिन जैया
सूरदास प्रभु की यह लीला, हम कत जिय पछितैया ॥4॥
आजु जसोदा जाइ कन्हैया महा दुष्ट इक माँर्यौ ॥
पन्नग-रूप मिले सिसु गो-सुत इहिं सब साथ उबार्यौ ।
गिरि -कंदरा समान भयानक जब अघ बदन पसार्यौ ।
निडर गोपाल पैठि मुख भीतर, खंड-खंड करि डार्यौ ।
याकैं बल हम बदत न काहुहिं, सकल भूमि तृन चार्यौ ।
जीते सबै असुर हम आगैं, हरि कबहुँ नहिं हार्यौ ।
हरषि गए सब कहनि महरि सौं अबहिं अघासुर मार्यौ ।
सूरदास प्रभु की यह लीला ब्रज कौ काज सँवार्यौ ॥5॥
ब्रह्मा बालक-बच्छ हरे ।
आदि अंत प्रभु अंतरजामी, मनसा तैं जु करे ।
सोइ रूप वै बालक गौ-सुत, गोकुल जाइ भरे ।
एक बरष निसि बासर रहि सँग, कहु न जानि परे ।
त्रास भयौ अपराध आपु लखि, अस्तुति करत सरे ।
सूरदास स्वामी मनमोहन, तामै मन न धरे ॥6॥
आजु कन्हैया बहुत बच्यौ री ।
खेलत रह्यौ घोष कैं बाहर, कोउ आयौ सिसु रूप रच्यौ री ।
मिलि गयौ आइ सखा की नाईं, लै चढ़ाइ हरि कंध सच्यौ री ।
गगन उड़ाइ गयौ लै स्यामहि, आनि धरनि पर आप दच्यौ री ।
धर्म सहाइ होत है जहँ-जहँ स्रम करी पूरब पुन्य पच्यौ री ।
सूर स्याम अब कैं बचि आए, ब्रज-घर-घर सुख-सिंधु मच्यौ री ॥7॥
अब कैं राखि लेहु गोपाल ।
दसहुँ दिसा दुसह दावागिनि उपजी है इहिं काल ।
पटकत बाँस, काँस कुल चटकत, लटकत ताल तमाल ।
उचटत अति अंगार, फुटत फर, झपटत लपट कराल ।
घूम धूँधि बाढ़ी घर अंबर, चमकत बिच-बिच ज्वाल ।
हरिन,बराह, मोर, चातक, पिक जरत जीव बेहाल ॥
जनि जिय डरहु, नैन मूँदहु सब, हँसि बोले नँदलाल ।
सूर अगिनि सब बदन समानी ,अभय किये ब्रज-बाल ॥8॥
बन तैं आवत धेनु चराए ।
संध्या समय साँवरे मुख पर, गो-पद-रज लपटाए ।
बरह मुकुट कैं निकट लसति लट, मधुप मनौ रुचि पाए ।
बिलसत सुधा जलज-आनन पर, उड़त न जात उड़ाए ।
बिधि बाहन-भच्छन की माला, राजत उर पहिराए ।
एक बरन बपु नहिं बड़ छोटे, ग्वाल बने इक धाए ।
सूरदास बलि लीला प्रभु की, जीवत जन जस गाए ॥9॥
मैया बहुत बुरो बलदाऊ ।
कहन लग्यौ मन बड़ो तमासी, सब मोढ़ा मिलि आऊ ।
मोहुँ कौं चुचकार गयो लै, जहाँ सघन बन झाऊ ।
भागि चलौ कहि गयौ उहाँ तै, काटि खाइ रे हाऊ ।
हौं डरपौं अरु रोवौं, कोउ नहिं धीर धराऊ ।
थरसि गयौं नहिं भागि सकौं, वै भागे जात अगाऊ ।
मोसौं कहत मोल कौ लीनो, आपु कहावत साऊ ।
सूरदास बल बड़ौ चबाई, तैसेहिं मिले सखाऊ ॥10॥
मैया हौं न चरैहौं गाइ ।
सिगरे ग्वाल घिरावत मोसौं, मेरे पाइ पिराइ ।
जौ न पत्याहि पूछि बलदाऊहिं, अपनी सौंह दिवाइ ।
यह सुनि माइ जसोदा ग्वालनि, गारी देति रिसाइ ।
मैं पठवति अपने लरिका कौं, आवै मन बहराइ ।
सूर स्याम मेरौ अति बालक, मारत ताहि रिंगाइ ॥11॥
धनि यह वृंदावन की रेनु ।
नंद-किसोर चरावत गैयाँ, मुखहिं बजावत बेनु ।
मन-मोहन कौ ध्यान धरै जिय, अति सुख पावत चैन ।
चलत कहाँ मन और पुरी तन, जहँ कछु लैन न दैनु ।
इहाँ रहहु जहँ जूठनि पावहु, ब्रजवासिन कै ऐनु ।
सूरदास ह्याँ की सरवरि नहि, कल्पवृच्छ सुर-धैनु ॥12॥
सोवत नींद आइ गई स्यामहिं ।
महरि उठी पौढ़ाइ दुहुँनि कौं, आपु लगी गृह कामहिं ।
बरजति है घर के लोगनि कौं, हरुऐं लै-लै नामहिं ।
गाढ़ै बोलि न पावत कोऊ, डर मोहन बलरामहिं ।
सिव सनकादि अंत नहिं पावत, ध्यावत अह-निसि जामहिं ।
सूरदास-प्रभु ब्रह्म सनातन, सो सोवत नँद-धामहिं ॥13॥
देखत नंद कान्ह अति सोवत ।
भूखे भए आजु बन-भीतर, यह कहि कहि मुख जोवत ।
कह्यौ नहीं मानत काहू कौ, आपु हठी दोउ बीर ।
बार-बार तनु पोंछत कर सों , अतिहिं प्रेम की पीर ।
सेज मँगाइ लई तहँ अपनी, जहाँ स्याम-बलराम ।
सूरदास प्रभु कै ढिग सोए, सँग पौढ़ी नँद-बाम ॥14॥
जागि उठे तब कुँवर कन्हाई ।
मैया कहाँ गई मो ढिग तै, संग सोवति बल भाई ।
जागे नंद, जसोदा जागी, बोलि लिए हरि पास ।
सोवत झझकि उठे काहे तै; दीपक कियौ प्रकास ।
सपनैं कूदि पर्यौ जमुना दह, काहूँ दियो गिराइ ।
सूर स्याम सौं कहति जसोदा, जनि हो लाल डराइ ॥15॥
मैं बरज्यौ जमुना-तट जात ।
सुधि रहि गई न्हात की तेरै, जनि डरपौ मेरे तात ।
नंद उठाइ लियौ कोरा करि, अपने संग पौढ़ाइ ।
वृंदावन मैं फिरत जहाँ तहँ, किहिं कारन तू जाइ ।
अब जनि जैहौ गाइ चरावन, कहँ को रहति बलाइ ।
सूर स्याम दंपति बिच सोए, नींद गई तब आइ ॥16॥