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"दयाराम" के अवतरणों में अंतर
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|कृतियाँ=प्रभोद भावनी,भगवदगीता माहात्म्य,भुजंग प्रयात,अनुभव मंजरी,प्रत्यक्शानुभव,स्वपनानुभव मंजरी। आख्यान रुक्मिणी विवाह,सत्यभामा विवाह,ओखाहरण,श्रीकृष्ण जन्म खंड,पत्र लीला.रस लीला,कमल लीला । | |कृतियाँ=प्रभोद भावनी,भगवदगीता माहात्म्य,भुजंग प्रयात,अनुभव मंजरी,प्रत्यक्शानुभव,स्वपनानुभव मंजरी। आख्यान रुक्मिणी विवाह,सत्यभामा विवाह,ओखाहरण,श्रीकृष्ण जन्म खंड,पत्र लीला.रस लीला,कमल लीला । | ||
− | |विविध=हिंदी,मराठी,ब्रज और संस्कृत में भी पद लिखे । ब्रह्म-सत्य और जगत भी सत्य की धारणा में विश्वास । उच्च शास्त्रीय हवेली संगीत के जानकार । पुष्टि संप्रदाय के प्रति दृढ़ आस्थावान । उल्लेखनीय कृति 'रसिक वल्लभ' में केवलाद्वैत सिध्दांत का खंडन तथा शुध्दाव्दैत सिध्दांत का मंडन किया । भक्तियुग की लोकप्रिय विधा है बारमासी । दयाराम ने वालाजी की, रसियाजी की और राधिका विरह की इस तरह तीन बारह-मासियाँ लिखीं । गुजरातियों का नववर्ष कार्तिक प्रथमा से आरंभ होता है, अतः ये बारमासियाँ भी यहीं से आरंभ होती हैं । | + | |विविध=हिंदी,मराठी,ब्रज और संस्कृत में भी पद लिखे । ब्रह्म-सत्य और जगत भी सत्य की धारणा में विश्वास । उच्च शास्त्रीय हवेली संगीत के जानकार । पुष्टि संप्रदाय के प्रति दृढ़ आस्थावान । उल्लेखनीय कृति 'रसिक वल्लभ' में केवलाद्वैत सिध्दांत का खंडन तथा शुध्दाव्दैत सिध्दांत का मंडन किया । भक्तियुग की लोकप्रिय विधा है बारमासी । दयाराम ने वालाजी की, रसियाजी की और राधिका विरह की इस तरह तीन बारह-मासियाँ लिखीं । गुजरातियों का नववर्ष कार्तिक प्रथमा से आरंभ होता है, अतः ये बारमासियाँ भी यहीं से आरंभ होती हैं । |
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14:29, 12 जनवरी 2015 का अवतरण
दयाराम
जन्म: 1775
निधन: 1853
उपनाम
गुजराती नाम દયારામ
जन्म स्थान
चाणोद, गुजरात, भारत ।
कुछ प्रमुख कृतियाँ
प्रभोद भावनी,भगवदगीता माहात्म्य,भुजंग प्रयात,अनुभव मंजरी,प्रत्यक्शानुभव,स्वपनानुभव मंजरी। आख्यान रुक्मिणी विवाह,सत्यभामा विवाह,ओखाहरण,श्रीकृष्ण जन्म खंड,पत्र लीला.रस लीला,कमल लीला ।
विविध
हिंदी,मराठी,ब्रज और संस्कृत में भी पद लिखे । ब्रह्म-सत्य और जगत भी सत्य की धारणा में विश्वास । उच्च शास्त्रीय हवेली संगीत के जानकार । पुष्टि संप्रदाय के प्रति दृढ़ आस्थावान । उल्लेखनीय कृति 'रसिक वल्लभ' में केवलाद्वैत सिध्दांत का खंडन तथा शुध्दाव्दैत सिध्दांत का मंडन किया । भक्तियुग की लोकप्रिय विधा है बारमासी । दयाराम ने वालाजी की, रसियाजी की और राधिका विरह की इस तरह तीन बारह-मासियाँ लिखीं । गुजरातियों का नववर्ष कार्तिक प्रथमा से आरंभ होता है, अतः ये बारमासियाँ भी यहीं से आरंभ होती हैं ।
जीवन परिचय
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