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धूप चमकती है चांदी की साड़ी पहने | धूप चमकती है चांदी की साड़ी पहने |
09:21, 28 फ़रवरी 2008 के समय का अवतरण
धूप चमकती है चांदी की साड़ी पहने
मैके में आई बिटिया की तरह मगन है
फूली सरसों की छाती से लिपट गई है
जैसे दो हमजोली सखियाँ गले मिली हैं
भैया की बाहों से छूटी भौजाई-सी
लहंगे की लहराती लचती हवा चली है
सारंगी बजती है खेतों की गोदी में
दल के दल पक्षी उड़ते हैं मीठे स्वर के
अनावरण यह प्राकृत छवि की अमर भारती
रंग-बिरंगी पंखुरियों की खोल चेतना
सौरभ से मह-मह महकाती है दिगन्त को
मानव मन को भर देती है दिव्य दीप्ति से
शिव के नन्दी-सा नदिया में पानी पीता
निर्मल नभ अवनी के ऊपर बिसुध खड़ा है
काल काग की तरह ठूँठ पर गुमसुम बैठा
खोई आँखों देख रहा है दिवास्वप्न को ।