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{{KKRachna
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
घणी ताळ जद
अंधारै मारग
कोई नीं आयौ
तो झूंपड़ी रै आगै
लटक्योड़ै
लालटेन ने लखायौ
‘म्हैं बेकार में ही
तेज पून सूं
माथौ लगाऊ
अठीनै कोई नीं आवै
किण ने रस्तौ दिखाऊँ
जकौ भी इण जंगळ
आधी रात में आवैला
उण रै मन में
चानणो तो
पैली सूं ही हुवैला’
हवा रौ लैरकौ आयौ
घप्प............
लालटेण बुझग्यौ।
</poem>