"उधार / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
(प्रूफ़रीड किया है) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
− | सवेरे उठा तो धूप खिल कर छा | + | सवेरे उठा तो धूप खिल कर छा गई थी<br> |
− | और एक चिड़िया अभी-अभी गा | + | और एक चिड़िया अभी-अभी गा गई थी।<br><br> |
− | + | मैनें धूप से कहा: मुझे थोड़ी गरमाई दोगी उधार<br> | |
चिड़िया से कहा: थोड़ी मिठास उधार दोगी?<br> | चिड़िया से कहा: थोड़ी मिठास उधार दोगी?<br> | ||
− | + | मैनें घास की पत्ती से पूछा: तनिक हरियाली दोगी—<br> | |
− | शंखपुष्पी से पूछा: उजास | + | ::तिनके की नोक-भर? <br> |
− | मैने हवा से | + | शंखपुष्पी से पूछा: उजास दोगी—<br> |
− | लहर से: एक रोम की | + | ::किरण की ओक-भर?<br> |
− | मैने आकाश से | + | मैने हवा से मांगा: थोड़ा खुलापन—बस एक प्रश्वास,<br> |
− | आँख की झपकी-भर | + | लहर से: एक रोम की सिहरन-भर उल्लास।<br> |
+ | मैने आकाश से मांगी<br> | ||
+ | आँख की झपकी-भर असीमता—उधार।<br><br> | ||
− | सब से उधार | + | सब से उधार मांगा, सब ने दिया ।<br> |
यों मैं जिया और जीता हूँ<br> | यों मैं जिया और जीता हूँ<br> | ||
− | क्योंकि यही सब तो है | + | क्योंकि यही सब तो है जीवन—<br> |
गरमाई, मिठास, हरियाली, उजाला,<br> | गरमाई, मिठास, हरियाली, उजाला,<br> | ||
− | गन्धवाही मुक्त खुलापन, लोच, उल्लास, लहरिल प्रवाह,<br> | + | गन्धवाही मुक्त खुलापन, <br> |
− | और बोध भव्य निर्व्यास निस्सीम का | + | लोच, उल्लास, लहरिल प्रवाह,<br> |
− | ये सब उधार पाये हुए | + | और बोध भव्य निर्व्यास निस्सीम का:<br> |
+ | ये सब उधार पाये हुए द्रव्य।<br><br> | ||
रात के अकेले अन्धकार में<br> | रात के अकेले अन्धकार में<br> | ||
सामने से जागा जिस में<br> | सामने से जागा जिस में<br> | ||
− | एक अनदेखे अरूप ने पुकार कर मुझ से पूछा था: क्यों जी,<br> | + | एक अनदेखे अरूप ने पुकार कर<br> |
+ | मुझ से पूछा था: "क्यों जी,<br> | ||
तुम्हारे इस जीवन के<br> | तुम्हारे इस जीवन के<br> | ||
इतने विविध अनुभव हैं<br> | इतने विविध अनुभव हैं<br> | ||
इतने तुम धनी हो,<br> | इतने तुम धनी हो,<br> | ||
− | तो मुझे थोड़ा प्यार | + | तो मुझे थोड़ा प्यार दोगे—उधार—जिसे मैं<br> |
− | + | सौ-गुने सूद के साथ लौटाऊँगा—<br> | |
− | और वह भी सौ-सौ बार गिन | + | और वह भी सौ-सौ बार गिन के—<br> |
− | जब-जब आऊँगा?<br> | + | जब-जब मैं आऊँगा?"<br> |
मैने कहा: प्यार? उधार?<br> | मैने कहा: प्यार? उधार?<br> | ||
स्वर अचकचाया था, क्योंकि मेरे<br> | स्वर अचकचाया था, क्योंकि मेरे<br> | ||
− | अनुभव से परे था ऐसा व्यवहार ।<br> | + | अनुभव से परे था ऐसा व्यवहार ।<br> |
− | + | उस अनदेखे अरूप ने कहा: "हाँ,<br> | |
− | उस अनदेखे अरूप ने कहा: हाँ,<br> | + | क्योंकि ये ही सब चीज़ें तो प्यार हैं—<br> |
− | क्योंकि ये ही सब चीज़ें तो प्यार | + | यह अकेलापन, यह अकुलाहट,<br> |
− | यह अकेलापन, यह अकुलाहट, यह असमंजस, अचकचाहट,<br> | + | यह असमंजस, अचकचाहट,<br> |
− | आर्त | + | :::आर्त अनुभव,यह खोज, यह द्वैत, यह असहाय<br> |
− | यह अन्धकार में जाग कर सहसा पहचानना | + | :::विरह व्यथा,<br> |
− | जो मेरा है वही ममेतर है<br> | + | यह अन्धकार में जाग कर सहसा पहचानना <br> |
+ | कि जो मेरा है वही ममेतर है<br> | ||
यह सब तुम्हारे पास है<br> | यह सब तुम्हारे पास है<br> | ||
− | तो थोड़ा मुझे दे | + | तो थोड़ा मुझे दे दो—उधार—इस एक बार—<br> |
− | मुझे जो चरम आवश्यकता | + | मुझे जो चरम आवश्यकता है।<br><br> |
उस ने यह कहा,<br> | उस ने यह कहा,<br> | ||
पंक्ति 54: | पंक्ति 59: | ||
अनदेखे अरूप को<br> | अनदेखे अरूप को<br> | ||
उधार देते मैं डरता हूँ:<br> | उधार देते मैं डरता हूँ:<br> | ||
− | क्या जाने यह याचक कौन है ?<br><br> | + | क्या जाने <br> |
+ | यह याचक कौन है?<br><br> |
15:50, 7 मार्च 2008 का अवतरण
सवेरे उठा तो धूप खिल कर छा गई थी
और एक चिड़िया अभी-अभी गा गई थी।
मैनें धूप से कहा: मुझे थोड़ी गरमाई दोगी उधार
चिड़िया से कहा: थोड़ी मिठास उधार दोगी?
मैनें घास की पत्ती से पूछा: तनिक हरियाली दोगी—
- तिनके की नोक-भर?
- तिनके की नोक-भर?
शंखपुष्पी से पूछा: उजास दोगी—
- किरण की ओक-भर?
- किरण की ओक-भर?
मैने हवा से मांगा: थोड़ा खुलापन—बस एक प्रश्वास,
लहर से: एक रोम की सिहरन-भर उल्लास।
मैने आकाश से मांगी
आँख की झपकी-भर असीमता—उधार।
सब से उधार मांगा, सब ने दिया ।
यों मैं जिया और जीता हूँ
क्योंकि यही सब तो है जीवन—
गरमाई, मिठास, हरियाली, उजाला,
गन्धवाही मुक्त खुलापन,
लोच, उल्लास, लहरिल प्रवाह,
और बोध भव्य निर्व्यास निस्सीम का:
ये सब उधार पाये हुए द्रव्य।
रात के अकेले अन्धकार में
सामने से जागा जिस में
एक अनदेखे अरूप ने पुकार कर
मुझ से पूछा था: "क्यों जी,
तुम्हारे इस जीवन के
इतने विविध अनुभव हैं
इतने तुम धनी हो,
तो मुझे थोड़ा प्यार दोगे—उधार—जिसे मैं
सौ-गुने सूद के साथ लौटाऊँगा—
और वह भी सौ-सौ बार गिन के—
जब-जब मैं आऊँगा?"
मैने कहा: प्यार? उधार?
स्वर अचकचाया था, क्योंकि मेरे
अनुभव से परे था ऐसा व्यवहार ।
उस अनदेखे अरूप ने कहा: "हाँ,
क्योंकि ये ही सब चीज़ें तो प्यार हैं—
यह अकेलापन, यह अकुलाहट,
यह असमंजस, अचकचाहट,
- आर्त अनुभव,यह खोज, यह द्वैत, यह असहाय
- विरह व्यथा,
- आर्त अनुभव,यह खोज, यह द्वैत, यह असहाय
यह अन्धकार में जाग कर सहसा पहचानना
कि जो मेरा है वही ममेतर है
यह सब तुम्हारे पास है
तो थोड़ा मुझे दे दो—उधार—इस एक बार—
मुझे जो चरम आवश्यकता है।
उस ने यह कहा,
पर रात के घुप अंधेरे में
मैं सहमा हुआ चुप रहा; अभी तक मौन हूँ:
अनदेखे अरूप को
उधार देते मैं डरता हूँ:
क्या जाने
यह याचक कौन है?