"जरूरी नहीं.../अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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भला क्या होंगे | भला क्या होंगे | ||
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+ | लगे अधूरा | ||
+ | यह घर, संसार | ||
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+ | घोंसले जले | ||
+ | आग से जंगल में | ||
+ | भागे परिंदे | ||
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+ | '''प्रेमी''' | ||
+ | प्रेमी युगल | ||
+ | अक्सर मुस्काते हैं | ||
+ | मन ही मन | ||
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+ | '''प्रश्न''' | ||
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+ | प्रश्न यह है | ||
+ | कब तक जिएंगे | ||
+ | मर-मर के | ||
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+ | '''चलते रहे''' | ||
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+ | अजाने रास्ते | ||
+ | चलते रहे पाँव | ||
+ | ज़िंदगी भर | ||
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+ | आखिर फिर | ||
+ | फूल हुए शिकार | ||
+ | पतझड़ में | ||
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+ | '''अजब राग''' | ||
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+ | अजब राग | ||
+ | अपने-अपने का | ||
+ | बजाते लोग | ||
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+ | पण्डे कहते | ||
+ | खुद को अधिवक्ता | ||
+ | भगवान का | ||
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+ | '''खाता''' | ||
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+ | दर्ज बही में | ||
+ | हम सब का खाता | ||
+ | होता भी है क्या ? | ||
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'''सफर''' | '''सफर''' |
18:33, 20 मार्च 2015 का अवतरण
जरूरी नहीं
जरूरी नहीं
जो पढ़ा है तुमने
पढ़ा सकोगे
जिनके घर
जिनके घर
बने हुए शीशे के
लगाते पर्द
डर
घर-घर में
फैला रहे हैं डर
टीवी-चैनल
एक कहानी
तेरी-मेरी है
बस एक कहानी
राजा न रानी
भोग
प्रभु के लिए
छप्पन भोग बने
खाये पुजारी
समय नहीं
बड़े दिनों से
मन है मिलने का
समय नहीं
उल्लू के पठ्ठे
उल्लू के पठ्ठे
उल्लू नहीं होंगे तो
भला क्या होंगे
किसे पता है
किसे पता है
नाचे कृष्ण-मुरारी
वृन्दावन में
माँ
लगे अधूरा
यह घर, संसार
माँ के बिना
आग
घोंसले जले
आग से जंगल में
भागे परिंदे
प्रेमी
प्रेमी युगल
अक्सर मुस्काते हैं
मन ही मन
प्रश्न
प्रश्न यह है
कब तक जिएंगे
मर-मर के
चलते रहे
अजाने रास्ते
चलते रहे पाँव
ज़िंदगी भर
आखिर फिर
फूल हुए शिकार
पतझड़ में
अजब राग
अजब राग
अपने-अपने का
बजाते लोग
अधिवक्ता
पण्डे कहते
खुद को अधिवक्ता
भगवान का
खाता
दर्ज बही में
हम सब का खाता
होता भी है क्या ?
सफर
कहने को तो
सफर है सुहाना
थकते जाना
कितने कवि
कितने कवि
कविता लिखने से
हुए पागल
पड़ी लकड़ी
पड़ी लकड़ी
जब भी है उठायी
आफ़त आयी
आदेश
आदेश हुआ
महिला हो मुखिया
कागज़ पर