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17:59, 12 जनवरी 2008 का अवतरण
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वसीयत का खुलना
मैं अभी कमरे में हूँ
अब से दो दिन बाद मैं देखूँगा इसे
केवल बाहर से
तुम्हारे कमरे का वह बंद दरवाज़ा
जहाँ हमने सिर्फ एक दूसरे से प्यार किया
पूरी मनुष्यता से नहीं
और तब हम मुड़ जायेंगें नए जीवन की ओर
मृत्यु की सजग तैयारियों वाले विशिष्ट तौर-तरीकों के बीच
जैसे कि बाइबल में मुड़ जाना दीवार की ओर
जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसके भी ऊपर जो ईश्वर है
जिसने हमें दो आँखे और पाँव दिए
उसी ने बनाया दो आत्माएं भी हमें
और वहाँ बहुत दूर
किसी दिन हम खोलेंगे इन दिनों को
जैसे कोई खोलता है वसीयत
मृत्यु के कई बरस बाद !