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"समुद्र तट पर / येहूदा आमिखाई" के अवतरणों में अंतर

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17:58, 12 जनवरी 2008 का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: येहूदा आमिखाई  » संग्रह: धरती जानती है
»  समुद्र तट पर



निशाँ जो रेत पर मिलते थे

मिट गए

उन्हें बनाने वाले भी मिट गए

अपने न होने की हवा में


कम ज़्यादा बन गया और वह जो ज़्यादा था

बन जाएगा असीम

समुद्र तट की रेत की तरह


मुझे एक लिफ़ाफ़ा मिला

जिसके ऊपर एक पता था और जिसके पीछे भी एक पता था

लेकिन भीतर से वह खाली था

और ख़ामोश

चिट्ठी तो कहीं और ही पढ़ी गई थी

अपना शरीर छोड़ चुकी आत्मा की तरह


वह एक प्रसन्न धुन

जो फैलती थी रातों को एक विशाल सफ़ेद मकान के भीतर

अब भरी हुई है इच्छाओं और रेत से

लकड़ी के दो खम्बों के बीच कतार से टंगे

स्नान-वस्त्रों की तरह


जलपक्षी धरती को देख कर चीखते हैं

और लोग शांति को देख कर


ओह मेरे बच्चे - मेरे सिर की वे संतानें

मैंने उन्हें बनाया अपने पूरे शरीर और पूरी आत्मा के साथ

और अब वे सिर्फ मेरे सिर की संतानें हैं


और मैं भी अब अकेला हूँ इस समुद्र-तट पर

रेत में कहीं-कहीं उगी थरथराते डंठलों वाली खर पतवार की तरह

यह थरथराहट ही इसकी भाषा है

यह थरथराहट ही मेरी भाषा है


हम दोनो के पास एक समान भाषा है !