भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अगनी मंत्तर / भगवतीलाल व्यास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatRajasthaniRachna}} <poem> आ, धरती! थारी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=भगवतीलाल व्यास |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
पंक्ति 57: | पंक्ति 57: | ||
भविस् रा | भविस् रा | ||
बाळ-गोपाळ | बाळ-गोपाळ | ||
− | <poem> | + | </poem> |
22:12, 24 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
आ, धरती!
थारी हथेळी दे
म्हारा हाथ में
म्हैं कोर दूं
इणमें मेंहदी रा
पांन-फूल।
ला, आकास!
थारौ दुसालो
दे म्हनै
म्हैं इण में टांक दूं
दो-चार
और सितारा।
ला, गंगा!
थारी धार
सूंप दे म्हनै
म्हैं पी जाऊं
इणरौ सगळौ
जैर
अेक दांण
फेर बण जाऊं
नीलकंठ
थनै कर दूं
निरमळ
आ, पून!
म्हारै कनै बैठ
तूं हांफ क्यूं रयौ है?
छनीक विसरांम कर
थनै सौरम रा
छंद सुणाऊं
सबदां रौ
अरथ समझाऊं!
आ, अगन!
इयां काळी/कियां पड़गी री तूं
क्यूं लजावै बावळी
कुळ रौ नांव
क्यूं फिरै चेतणा विहीण !
आ, नैड़ी
चेतण कर दूं थनै
अगनी-मंत्तर सूं।
जे तूं ही बुझगी/ तौ-
किण सूं
जळसी मिनखपणै
रा दिवळा
किण सूं/ परगटसी
आतम रौ उजास
किणरै आंगण रमसी
भविस् रा
बाळ-गोपाळ