भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बुन्देलखंड के आदमी / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=फूल नहीं रंग बोलते हैं-1 / केद...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल | |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल | ||
− | |संग्रह=फूल नहीं रंग बोलते हैं-1 / केदारनाथ अग्रवाल | + | |संग्रह=फूल नहीं, रंग बोलते हैं-1 / केदारनाथ अग्रवाल |
}} | }} | ||
09:23, 28 फ़रवरी 2008 के समय का अवतरण
हट्टे-कट्टे हाड़ों वाले,
चौड़ी, चकली काठी वाले
थोड़ी खेती-बाड़ी रक्खे
केवल खाते-पीते जीते !
कत्था चूना लौंग सुपारी
तम्बाकू खा पीक उगलते,
चलते-फिरते, बैठे-ठाढ़े
गन्दे यश से धरती रंगते !
गुड़गुड़ गुड़गुड़ हुक्का पकड़े,
ख़ूब धड़ाके धुआँ उड़ाते,
फूहड़ बातों की चर्चा के
फौवारे फैलाते जाते !
दीपक की छोटी बाती की
मन्दी उजियारी के नीचे
घण्टों आल्हा सुनते-सुनते
सो जाते हैं मुरदा जैसे !!