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"आदमी / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

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हर शाम किसी चोट का निशान हुआ आदमी।
 
हर शाम किसी चोट का निशान हुआ आदमी।
 
'''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>'''''
 

20:07, 9 फ़रवरी 2009 का अवतरण

तन-मन-प्रान, मिटे सबके गुमान

एक जलते मकान के समान हुआ आदमी

छिन गये बान, गिरी हाथ से कमान

एक टूटती कृपान का बयान हुआ आदमी

भोर में थकान, फिर शोर में थकान

पोर-पोर में थकान पे थकान हुआ आदमी

दिन की उठान में था, उड़ता विमान

हर शाम किसी चोट का निशान हुआ आदमी।