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"जब कहते हो तुम / पूजा कनुप्रिया" के अवतरणों में अंतर
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− | सुबह मुहताज | + | सुबह मुहताज है पलकों के उठने की |
आँखों में बन्द हैं | आँखों में बन्द हैं | ||
सागर नदी बरसात सब | सागर नदी बरसात सब | ||
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सूरज हथेली में सजा रक्खा है | सूरज हथेली में सजा रक्खा है | ||
बाँध रक्खी है हवाएँ आँचल से | बाँध रक्खी है हवाएँ आँचल से | ||
− | चाँद को छत पे बुला रक्खा | + | चाँद को छत पे बुला रक्खा है |
तुम ही तो कहते हो | तुम ही तो कहते हो |
17:46, 17 जुलाई 2015 के समय का अवतरण
जब कहते हो ये तुम
मेरी जुल्फों में क़ैद है बादल
सुबह मुहताज है पलकों के उठने की
आँखों में बन्द हैं
सागर नदी बरसात सब
टाँक रखे हैं जूड़े में तारे मैंने
सूरज हथेली में सजा रक्खा है
बाँध रक्खी है हवाएँ आँचल से
चाँद को छत पे बुला रक्खा है
तुम ही तो कहते हो
मेरी मुस्कान से फूल खिल जाते हैं
डूबने लगती हे धरती भी मेरे आँसुओं में
कि अगर मैं न होती
तुम्हारे जीवन मे
तो रुकने लगती हैं साँसें
तुम्हारे सीने में
ये कहकर कहा है न तुमने
सारी सृष्टि में लय मुझसे है
तुम्हारे जीवन में गति मुझसे है
जब कहते हो ये तुम
तो बताओ मानते भी हो क्या मुझे
इतनी बड़ी शक्ति
इतना ही ज़रूरी